आपरो घी सौ कोसे हालै
आपरो- खुद का
कोस- तीन किलोमीटर की दूरी
हालै- चलता है
यानि खुद का घी सौ कोस (एक कोस लगभग तीन किलोमीटर का होता है।) तक काम आता है।
इस कहावत को लेकर मेरे दिमाग में आज तक कंफ्यूजन है। इसका एक अर्थ तो यह हुआ कि घर का निकाला हुआ घी खाया हो तो तीन सौ किलोमीटर तक बिना थके चल सकते हैं। यानि बीकानेर से जयपुर तक। लेकिन जहां इस्तेमाल होता है वहां इसका यह अर्थ नहीं होता। मेरी पड़नानीजी, जिनकी जबान खुलती तो अखाणों (कहावतों) के साथ शब्द तैरते हुए आते और तीर की तरह सटीक होते, ने मुझे समझाया कि ऐसा नहीं है घी खाकर चलने से बेहतर है किसी और को अपना घी दे दो। सौ कोस के बाद तुम्हे वापस मिल जाएगा। ये कुछ टेढ़ी बात हुई। यानि आज आपने किसी और को घी खिलाया है। अब घी भी सिंबोलिक हो चुका है और दूरी भी। आज खिलाया है तो कल या सौ कोस दूर कहीं भी कभी भी वापस काम जरूर आएगा।
मैंने कोशिश तो की है लेकिन इस कहावत की गहराई कुछ और अधिक है। मैं खुद तो आनन्द ले पा रहा हूं लेकिन व्यक्त नहीं कर पा रहा। जो लोग पढ़ें वे गुणकर शायद इसका आनन्द ले सकेंगे।
आपरो- खुद का
कोस- तीन किलोमीटर की दूरी
हालै- चलता है
यानि खुद का घी सौ कोस (एक कोस लगभग तीन किलोमीटर का होता है।) तक काम आता है।
इस कहावत को लेकर मेरे दिमाग में आज तक कंफ्यूजन है। इसका एक अर्थ तो यह हुआ कि घर का निकाला हुआ घी खाया हो तो तीन सौ किलोमीटर तक बिना थके चल सकते हैं। यानि बीकानेर से जयपुर तक। लेकिन जहां इस्तेमाल होता है वहां इसका यह अर्थ नहीं होता। मेरी पड़नानीजी, जिनकी जबान खुलती तो अखाणों (कहावतों) के साथ शब्द तैरते हुए आते और तीर की तरह सटीक होते, ने मुझे समझाया कि ऐसा नहीं है घी खाकर चलने से बेहतर है किसी और को अपना घी दे दो। सौ कोस के बाद तुम्हे वापस मिल जाएगा। ये कुछ टेढ़ी बात हुई। यानि आज आपने किसी और को घी खिलाया है। अब घी भी सिंबोलिक हो चुका है और दूरी भी। आज खिलाया है तो कल या सौ कोस दूर कहीं भी कभी भी वापस काम जरूर आएगा।
मैंने कोशिश तो की है लेकिन इस कहावत की गहराई कुछ और अधिक है। मैं खुद तो आनन्द ले पा रहा हूं लेकिन व्यक्त नहीं कर पा रहा। जो लोग पढ़ें वे गुणकर शायद इसका आनन्द ले सकेंगे।
Comments
इस कहावत का पहला अर्थ तो शायद यही होगा लेकिन मेरी पड़नानी इससे सहमत नहीं थी। वे कहती थीं कि किसी को कुछ यदि आज दिया जाए और परवाह नहीं की जाए कि लेने वाला लौटाएगा या नहीं तो भी आपकी चीज किसी न किसी फार्म में वापस आ जाएगी।
पिछले दिनों मैंने कहीं पढ़ा कि सूक्ष्म तरंगों के माध्यम से सृष्टि का हर इंसान एक-दूसरे से जुड़ा है। किसी एक से किया गया संवाद आगे चलता रहता है। एक दिन लौटकर भी आता है। भले ही उस आदमी से न आए जिससे आपने संवाद किया था। उसी दौरान मुझे यह कहावत फिर से याद आ गई।
अब यह अध्यात्मिक बात और कहावत हो सकता है देश काल परिस्थिति के कारण आपस में जुड़ गए हों।
इसीलिए कह रहा था कि इसका स्वाद तो आ रहा है लेकिन प्रकट नहीं कर पा रहा हूं।
Pauranik Kathayenthanks for articals