बहुत दिन हुए इस ब्लाग पर कुछ लिख नहीं पाया। आज अचानक से एक पुरानी कहावत याद आ गई तो सोचा कि क्यों न इसे आप लोगों को भी अवगत कराया जाए। जहाँ देखहूं निज अधिक बिगार, लघु लाभहु कर तजहुँ विचार नहिं यह बुद्धिमान की चाल, "दमडी की बुलबुल टका हलाल" ।। अब कहावत आप लोगों नें पढ ली है तो लगे हाथ इसका अर्थ भी बता ही दीजिए। भई ऎसा मत सोचिएगा कि मैं कोई पहेली पूछ रहा हूँ या कि मैने आप लोगों के ज्ञान की कोई परीक्षा लेने का मन बनाया है। ऎसा कुछ नहीं है---वो तो बस वैसे ही ज्यादा कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा था तो सोचा कि जितना लिख दिया, उसे ही पोस्ट कर देते हैं। बाकी सब समझदार लोग हैं---खुद ही समझ लेंगें :-) अरे हाँ, एक ओर कहावत याद आ गई, वो भी पढते चलिए:---- जो कछु लखि न परे निज हानि, तौ समाज को तजहु न कानि क्यों बिन स्वारथ सहिये खिल्ली, "पंच कहैं बिल्ली तौ बिल्ली"