Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2009

एक कहावत

जातो गवाए , भातो न खाए यानि कि जिस किसी कारण से किसी ने अपना अस्तित्व खोया या अपनी पहचान खोयी ,वो काम भी पूरा नही हुआ और पहचान भी गई । यानि पहचान भी गई और काम भी नही हुआ । जातो - जाति भात - भोजन ,चावल

ब्‍लॉग के बीस नहीं इक्‍कीस लेखक हैं

इस ब्‍लॉग में अब तक इक्‍कीस ब्‍लॉगर लेखक के रूप में जुड़ चुके हैं। इनमें से कुछ इतने सक्रिय हैं कि वे नित नई कहावतों से दूसरों को भी सक्रिय कर देते हैं। पिछली पोस्‍ट में मैं सतीश चंद्र सत्यार्थी जी का नाम भूल गया था। इस गलती को सुधारते हुए पेश है कहावत प्रेमियों की लिस्‍ट। इस ब्‍लॉग के लेखक Abhishek Mishra सतीश चंद्र सत्यार्थी imnindian राजीव जैन Rajeev Jain डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर Udan Tashtari Ambesh Kumar Sisodia शाश्‍वत शेखर Vandana Vikas Agrawal सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi इरफ़ान Sudhir (सुधीर) सुजाता "मुकुल:प्रस्तोता:बावरे फकीरा " वर्षा Ambesh Kumar Sisodia pukhraj chopra Ashok प्रवीणा जोशी bikki

कहावतों के इक्‍कीस प्रेमी

इस ब्‍लॉग में अब तक बीस ब्‍लॉगर लेखक के रूप में जुड़ चुके हैं। इनमें से कुछ इतने सक्रिय हैं कि  वे नित नई कहावतों से दूसरों को भी सक्रिय कर देते हैं। इस ब्‍लॉग के लेखक  Abhishek Mishra imnindian राजीव जैन Rajeev Jain डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर Udan Tashtari Ambesh Kumar Sisodia शाश्‍वत शेखर Vandana Vikas Agrawal सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi इरफ़ान Sudhir (सुधीर) सुजाता "मुकुल:प्रस्तोता:बावरे फकीरा " वर्षा Ambesh Kumar Sisodia pukhraj chopra Asho k प्रवीणा जोशी bikki इनमें से अधिकांश लेखकों ने किसी ने किसी समय पर तूफानी पारियां खेली  और अब भी कई बार चौके छक्‍के मारकर निकल जाते हैं।  इससे आंचलिक कहावतों का एक ऐसा संदर्भ कोष तैयार हो रहा है  जो आने वाली पीढ़ी के काम आ सकता है।  इसके पीछे एक और अभिलाषा है कि आंचलिक कहावतों में से समानार्थक कहावतों को लेकर  उनका विश्‍लेषण भी किया जाए।  हालांकि कुछ कहावतें ऐसी आ चुकी हैं  लेकिन अभी और बहुत सी कहावतों का इंतजार यह ब्‍लॉग कर रहा है।  उम्‍मीद करता हूं कि भविष्‍य में और भी गुणीजन इस ब्‍लॉग से जुड़ेंगे  और इस संदर्भ कोष को समृद्ध करने

टके का कमाल

यह पोस्‍ट रतनसिंह शेखावतजी के ब्‍लॉग से ली गई है। उन्‍होंने अपने ब्‍लॉग में प्रकाशित सभी कहावतों को इस ब्‍लॉग में शामिल करने की अनुमति दी है। इसके लिए उनका आभार...  टका वाळी रौ ई खुणखुणियौ बाजसी = टका देने वाली का ही झुनझुना बजेगा | सन्दर्भ कथा --- एक बार ताऊ मेले में जा रहा था | गांव में ताऊ का सभी से बहुत अच्छा परिचय था सो गांव की कुछ औरतों ने अपने अपने बच्चो के लिए ताऊ को मेले से झुनझुने व अन्य खिलौने लाने को कहा और ताऊ सबके लिए खिलौने लाने की हामी भरता गया | इनमे से एक गरीब औरत ने ताऊ को हाथों-हाथ 4 आने देकर अपने बच्चे के लिए एक झुनझुना लाने का आग्रह किया | सभी औरते ताऊ का मेले से लौटने का इंतजार करती रही और अपने बच्चो को बहलाती रही कि ताऊ मेले गया है तुम्हारे लिए खिलौने मंगवाए है | आखिर शाम को ताऊ मेले से लौट कर आया तो सभी औरतों और उनके बच्चो ने ताऊ को घेर लिया पर उन्हें आश्चर्य के साथ बड़ा दुःख हुआ कि ताऊ तो सिर्फ एक झुनझुना लाया था उस बच्चे के लिए जिसकी माँ ने पैसे दिए थे | ताऊ ने सभी से मुस्कराकर कहा "मैंने मेले में दुकानदार से सभी के लिए खिलौने मांगे थे पर बिना पैसे खिलौन

खईता भीम तऽ हगता सकुनी ?

इस कहावत के शब्द आपको थोड़े असभ्य और असाहित्यिक लग सकते हैं पर कहावतों का असली मजा तो उनके ठेठपन में ही है न! भारत के गांवों में आज भी बातों कों बेबाक और बेलौस तरीके से कहा जाता है। कोई लाग-लपेट नहीं कोई लीपा-पोती नहीं। तो आइये कहावत पर चलें... खईता - खाएंगे , भीम - महाभारत के एक पात्र , तऽ - तो , हगता - मल त्याग करेंगे , सकुनी - महाभारत के एक पात्र अर्थात जो कर्म करता है वही उसका फल भी पाता है. फल में किसी और की हिस्सेदारी नहीं होती. कर्म अच्छा हो या बुरा उसका फल आपको अकेले ही भोगना है. सतीश चन्द्र सत्यार्थी

एक कहावत

जो करे sharam ,okra fute करम यानि जो vayakti sharma -sharma कर rah jata है वो जीवन me कुछ नही कर पता है। यानि शर्म- sharam me kimat phut jati है.

एक कहावत

जो करे शर्म ,ओकरा फूटे करम यानि जो व्यक्ति शर्मा -शर्मा कर रह जाता है वो जीवन में कुछ नही कर पता है। यानि शर्म- शर्म में किस्मत फूट जाती है.

हँसुआ के बिआह में खुरपी के गीत

हँसुआ के बिआह में खुरपी के गीत इसका मतलब हुआ माहौल के विपरीत अर्थात बिल्कुल अप्रासंगिक बात करना। यह कहावत बिहार में बहुत प्रचलित है। अगर किसी विषय पर बात चल रही हो और अचानक कोई एक नयी बात शुरू कर दे तो यह कहावत कही जाती है। सतीश चंद्र सत्यार्थी

हम करे तो पाप, कृष्ण करें तो लीला

हम करे तो पाप, कृष्ण करें तो लीला अर्थात् सामर्थवान के उद्दंड हरकतों को भी ज़माना हल्के से लेता हैं जबकि वही हरकत कमजोर के लिए पाप सामान होती हैं। इसके लिए कृष्ण के उदाहरण से उत्तम क्या हो सकता हैं। कृष्ण ने माखन चोरी से लेकर गोपी से छेड़-छाड तक क्या नहीं किया पर हम सब कुछ लीला मान कर पूजते हैं यदि वह सब ब्रज में किसी और ने किया होता तो उसके कारनामे हम यूँ पूजते? कहते भी हैं "समरथ को नहीं कोई दोष गोसाई..."

ऊंदरे रा जाम्‍या बिल ही खोदसी

ऊंदरे रा जाम्‍या बिल ही खोदसी  ऊंदरा- चूहा  जाम्‍या- के पैदा किए हुए  खोदसी- खोदेंगे  यानि चूहे के पैदा किए हुए बिल ही खोदेंगे।  इस कहावत का इस्‍तेमाल प्राय: इस अर्थ में होता है कि जैसा पिता होगा संतान भी वैसी ही होगी। संगीतकार का बेटा संगीतकार और नाई का बेटा नाई। पिता के काम को करने में पुत्र को जोर नहीं आता वह सहज ही इसे करने लगता है। हमारे फोटोग्राफर अजीज भुट्टा जी का पुत्र बहुत छोटी उम्र में ही फोटो खींचने लगा। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जा सकती है।