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Showing posts from May, 2009

एक सार्वभौमिक पहेली

हिन्दयुग्म से साभार धरा से उगती उष्मा , तड़पती देहों के मेले दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो ######################## यहाँ उपभोग से ज़्यादा प्रदर्शन पे यकीं क्यों है तटों को मिटा देने का तुम्हारा आचरण क्यों है तड़पती मीन- तड़पन को अपना कल समझ लो दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो ######################## मुझे तुम माँ भी कहते निपूती भी बनाते हो मेरे पुत्रों की ह्त्या कर वहां बिल्डिंग उगाते हो मुझे माँ मत कहो या फिर वनों को उनका हक दो दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो ######################## मुझे तुमसे कोई शिकवा नहीं न कोई अदावत है तुम्हारे आचरण में पल रही ये जो बगावत है मेघ तुमसे हैं रूठे , बात इतनी सी समझ लो दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो

सटायर को लिखना आसान नहीं है

सटायर लिखने वाले को वास्तव में लोकोक्तियों और मुहावरों के इर्द गिर्द घूमना चाहिए ताकि सटायर और अधिक तीखे तथा प्रभावी हों . जैसे : चाम का वास्ता भैंस को शिकार             यानी थोड़े से चमड़े  के लिए भैंस को मारना इतना कह देने मात्र से फिजूल खर्च समझ जाएंगे की वे क्या कर रहे हैं -- गिरीश बिल्लोरे

पगली क्‍या करती है ?

गांव करै ज्‍यां गैली करै  करै- करता है या करती है  गैली - पगली  ज्‍यां- की तरह  यानि जैसा गांव करता है वैसा ही गैली करती है।  यानि जैसा समूह करता है वैसा ही समूह का एक हिस्‍सा करता है। कई बार बाहरी आदमी किसी जगह आता है तो वह देखता है कि बाकी लोग कैसा व्‍यवहार करते हैं। और उसी के अनुसार अपना व्‍यवहार तय करता है। तब कहा जाता है गांव करै ज्‍यां गैली करे। 

'शहर सिखावे, कोतवाल सीखे'

'शहर सिखावे, कोतवाल सीखे' बिहार में प्रचलित इस कहावत में कोतवाल का अर्थ न सिर्फ़ पुलिस बल्कि किसी भी जिम्मेवार अधिकारी के रूप में लिया जा सकता है। कहावत का अर्थ है- "जिम्मेवारियां ख़ुद ही उन्हें निभाने के तरीके भी सिखा देती हैं, जिस प्रकार शहर ख़ुद ही कोतवाल को सिखा देता है कि उसे व्यवस्थित कैसे रखा जाए।"

मारी थोड़ी घींसी घणी

कांई करूं म्‍हारै घर रो धणी - मारी थोड़ी घींसी घणी  इस कहावत को समझाने के लिए पहले एक कथा बताना चाहूंगा।  एक औरत बड़ी कर्कशा थी, घर वालों से ही नहीं आस-पड़ोस और आने- जाने वालों से भी लड़ती झगड़ती रहती थी। इसलिए सभी उससे रुष्‍ट रहते थे। एक बार घर में कोई फंक्‍शन था सो पाहुणे घर आए हुए थे। तो उनसे भी झगड़ने लगी। पाहुनों ने दीए की लौ कम की और उस औरत की जमकर पिटाई की। हो-हल्‍ला सुनकर घर के समीप ही धुणी लगाने वाला एक साधु और पड़ोसी गंगू तेली भी आ गए। साधु चिढ़ा हुआ था क्‍योंकि कर्कशा स्‍त्री सदा उसकी शांति भंग करती रहती। पड़ोसी तो सबसे ज्‍यादा पीडि़त था। घर में आते ही उन्‍हें माजरा समझ में आया तो उन्‍होंने भी अपने हाथ साफ किए और जमकर दो चार लगाए। कुछ देर बाद जब उस महिला का पति घर आया तो वह औरत फिर से चिल्‍लाने लगी और पाहुंनों पर दोषारोपण करने लगी। पति ने सोचा रोज की तरह वातावरण खराब कर रही है। सो उसने भी कर्कशा को पीटा और फिर खींचकर घर के बाहर दालान में पटक दिया। वह वहीं रातभर पड़ी रही। सुबह जब दूसरी औरतों ने मजा लेने के लिए उससे पूछा कि क्‍या बात है पूरी रात बाहर कैसे पड़ी रही तो वह महिला

हंस तो केवल मोती ही चुगेगा

क्‍या हंसा मोती चुगै - क्‍या लंघण कर जावै  लंघण - उपवास हंस या तो मोती चुगेगा वरना लंघन कर जाएगा।  इसी बात में सारी बात आ गई ।