कांई करूं म्हारै घर रो धणी - मारी थोड़ी घींसी घणी
इस कहावत को समझाने के लिए पहले एक कथा बताना चाहूंगा।
एक औरत बड़ी कर्कशा थी, घर वालों से ही नहीं आस-पड़ोस और आने- जाने वालों से भी लड़ती झगड़ती रहती थी। इसलिए सभी उससे रुष्ट रहते थे। एक बार घर में कोई फंक्शन था सो पाहुणे घर आए हुए थे। तो उनसे भी झगड़ने लगी। पाहुनों ने दीए की लौ कम की और उस औरत की जमकर पिटाई की। हो-हल्ला सुनकर घर के समीप ही धुणी लगाने वाला एक साधु और पड़ोसी गंगू तेली भी आ गए। साधु चिढ़ा हुआ था क्योंकि कर्कशा स्त्री सदा उसकी शांति भंग करती रहती। पड़ोसी तो सबसे ज्यादा पीडि़त था। घर में आते ही उन्हें माजरा समझ में आया तो उन्होंने भी अपने हाथ साफ किए और जमकर दो चार लगाए। कुछ देर बाद जब उस महिला का पति घर आया तो वह औरत फिर से चिल्लाने लगी और पाहुंनों पर दोषारोपण करने लगी। पति ने सोचा रोज की तरह वातावरण खराब कर रही है। सो उसने भी कर्कशा को पीटा और फिर खींचकर घर के बाहर दालान में पटक दिया। वह वहीं रातभर पड़ी रही। सुबह जब दूसरी औरतों ने मजा लेने के लिए उससे पूछा कि क्या बात है पूरी रात बाहर कैसे पड़ी रही तो वह महिला बोली
बात कहूं तो बातां झूठी, दियो नन्दा कर पांवणा कूटी
फेर आयग्यो मोडियो स्वामी, बो भी दो धड़ाधड़ धामी
फेर आयो गंगियो तेली, वै भी दो जमार देली
कांई करूं घर रो घणी, मारी थोड़ी घींसी घणी... :)
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SBAI TSALIIM
Pauranik KathayenTHANKS FOR ARTICALS