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Showing posts from September, 2009

एक कहावत पुरानी

पूत कपूत तो का धन संचय , पूत सपूत तो का धन संचय इस कहावत के पीछे का मर्म यह है कि पूत अगर कपूत निकला तो उसके लिए धन संचय करके क्या फायदा , क्यों कि कपूत तो कमाया हुआ धन नष्ट कर देगा. और अगर वो सपूत निकला तो भी धन संचय कर के क्या फायदा , क्योकि सपूत खुद धन संचय कर सकता है. दोनों ही हालातो में मनुष्य को संग्रह कि नीति से बचना का सुझाव दिया गया है.

एक कहावत

बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद यानि गलत पात्र से (बन्दर से ) किसी सही चीज (अदरक ) का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए . जैसे किसी डाक्टर से किसी कानून की बरीकियो के बारे में राय लेना .

एक कहावत

दान के बछ्छिया के दांत नहीं गिने जाते यानि जो चीज मुफ्त में मिल रही है उसमे मीन मेख नहीं निकला जाता है. जैसा मिलरहा है वैसा स्वीकार किया जाता है.

कौआ कोसे ढोर न मरे

कौआ के कोसे ढोर मरे तो, रोज कोसे, रोज मारे, रोज खाए। ---------------------------------- कोस - किसी के बारे में बुरा सोचना, किसी का बुरा होने की कामना करना। ढोर - जानवर ----------------------------- भावार्थ - इसका सीधा सा अर्थ है कि यदि बुरा सोचने वालों के कारण ही किसी का बुरा होने लगे तो सभी बैठे-बैठे लोगों का बुरा करते रहेंगे। यदि ऐसा होता तो कौआ को अपने खाने के लिए किसी मरे जानवर का इंतज़ार नहीं करना पढता। वह रोज किसी जानवर का बुरा सोचता (मरने की सोचता) जानवर मरते और कौआ को खाने को मिलता। इससे शिक्षा मिलती है कि हमारा बुरा हमेशा हमारे कर्मों से होता है, किसी के बुरा चाहने से हमारा बुरा नहीं होता।
हड़बड़ी बियाह , कनपटी सिनूर यह मैथिलि कहावत मेरे एक मित्र रजनीश झा ने मेरे ब्लॉग बकबक पर प्रतिक्रिया स्वरुप डाला था मै आप के सामने पेश कर रही हूँ . हड़बड़ी का काम शैतान का होता है. जल्दीबाजी में शादी करने गए थे तो दुल्हे ने दुल्हन के कान में सिन्दूर डाल दिया .

गाडी देख पग भारी

"गाडी देख,पग भारी" कोई भी सुविधा (जो पहले नहीं थी,तब भी काम चल रहा था) जब उपलब्ध होने की सम्भावना होती है तो ऎसा महसूस होने लगता है कि उसके बिना हमारा काम चल ही नहीं सकता। जैसे पैदल चलने वाले को गाडी में बैठने का अवसर मिलते ही उसे अपने पैर पैदल चलने में भारी भारी से महसूस होने लगते हैं।

एक कहावत

सारा खीर खा के पेंदा तीता करना इस कहावत का मतलब होता है कि सारा काम निपटा कर अंत में ऐसा कुछ कर देना या कह देना जिससे पहले किया गए काम का सारा मजा किरकिरा हो जाये . तीता- कड़वा , पेंदा - किसी भी चीज का अंतिम सिरा