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Showing posts from January, 2009

एक bihari कहावत

नौ जाने छ जनबे न करे यानि आप नौ की संख्या तो जानते है पर छ की संख्या नही जानते। यानि आप को बाद की घटनाये तो मालूम है पर उसके पहले की नही । ये प्राय उस सन्दर्भ में कहा जाता है जब कोई व्यक्ति किसी विषय को जान कर भी अनजान बनना चाहता है .

गणतंत्र की जय हो .

गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं. आज जाना कविता की ताक़त को : जबलपुर में महिला बाल विकास की झांकी प्रथम

सौ कोस तक घी खाते रहो

आपरो घी सौ कोसे हालै आपरो- खुद का कोस- तीन किलोमीटर की दूरी हालै- चलता है यानि खुद का घी सौ कोस (एक कोस लगभग तीन किलोमीटर का होता है।) तक काम आता है। इस कहावत को लेकर मेरे दिमाग में आज तक कंफ्यूजन है। इसका एक अर्थ तो यह हुआ कि घर का निकाला हुआ घी खाया हो तो तीन सौ किलोमीटर तक बिना थके चल सकते हैं। यानि बीकानेर से जयपुर तक। लेकिन जहां इस्‍तेमाल होता है वहां इसका यह अर्थ नहीं होता। मेरी पड़नानीजी, जिनकी जबान खुलती तो अखाणों (कहावतों) के साथ शब्‍द तैरते हुए आते और तीर की तरह सटीक होते, ने मुझे समझाया कि ऐसा नहीं है घी खाकर चलने से बेहतर है किसी और को अपना घी दे दो। सौ कोस के बाद तुम्‍हे वापस मिल जाएगा। ये कुछ टेढ़ी बात हुई। यानि आज आपने किसी और को घी खिलाया है। अब घी भी सिंबोलिक हो चुका है और दूरी भी। आज खिलाया है तो कल या सौ कोस दूर कहीं भी कभी भी वापस काम जरूर आएगा। मैंने कोशिश तो की है लेकिन इस कहावत की गहराई कुछ और अधिक है। मैं खुद तो आनन्‍द ले पा रहा हूं लेकिन व्‍यक्‍त नहीं कर पा रहा। जो लोग पढ़ें वे गुणकर शायद इसका आनन्‍द ले सकेंगे।

एक बंगला कहावत

तेलेर मथाये तेल । अर्थात जिसके सर पर तेल हो उसके सर पर लोग और तेल लगते है। यानि जिनके पास पैसा होता है लोग उन्हें और सम्मान, पैसा देते है। यही दुनिया है.

एक bihari कहावत

घी का लड्डू टेढो भला । इस का अर्थ यह होता है कि घी के लड्डू का स्वाद महत्वपूर्ण होता है ,कैसा दीखता है ये मायने नही रखता.इस कहावत का प्रयोग प्राय लड़को के संदर्भ में किया जाता है, कि उनकी सकल -सूरत मायने नही रखती वरन उनका होना ही अपने आप में महत्वापूर्ण है।

bihari कहावत

रस्सी जल गैल ,पर ऐठन न गैल । यानि कि वैभ्व या सत्ता तो खत्म हो गई पर नखरे नही खत्म हुए। ये हम नेता , नौकरशाह ,अभिनेता के सन्दर्भ में कह सकते है। जो चुनाव हर जाने पर या नौकरी ख़तम हो जाने पर या मार्केट रेट ख़तम हो जाने पर भी नखरे करने से बाज नही आते और अपने पुराने दिनों को याद कर - कर के वैसे ही नखरे दिखाते है।

bihari और बंगाली कहावत

bihari कहावत - " कम्बल ओढ़ कर घी पिए है " बंगला कहावत -" डूबे- डूबे जोल khawa " दोनों कहावतो का मर्म एक ही है कि छुप छुप कर अपना काम करना ya maje lena bina kuch logo ko pata lage. jol kawa - pani pina

ek aur bihari kahawat

"ताड़ के पेड़ के नीचे दूध पिए से ओ , लोग सब एहे कहेबे कि ई ताडी पिए है " बिहार खास कर पटना के इलाके में यह कहा जाता है कि ताड़ के पेड़ के नीचे प्राय लोग नशा करने जाते है ताडी(एक प्रकार की शराब ) पीकर । ऐसी स्थिति में कोई भला मानुस अगर ताड़ के पेड़ के नीचे दूध भी पीता है तो लोग उसके बारे में यही सोचते है कि वो आदमी ताडी पी रहा है.यानि जैसी सांगत या जैसी जगह में आप रहेगे लोग आपके बारे में उसी तरह की धारणा बनाये गे.इसलिए दोस्तों और स्थान का चयन सावधानी से करना चाहिए.

एक बंगला की कहावत

जेखाने चास होए , से खाने बास होए ना जे खाने बास होए , से खाने चास होए ना। अर्थात आदमी जहा रहता है वहा खेती यानि कारोबार नही करता , जहा खेती या कारोबार करता है वहा रहता नही है। मतलब जमीन एक ही चीज के लिए उपयोग में लाई जाती है। पुराने ज़माने में घर के बड़े बुजुर्ग घर और bahar में परदा रखने की हिदायत दिया करते थे। बंगाल में इस कहावत का इस्तेमाल इस बात पर भी किया जाता है किनौकरी करने कि जगह पर थोते प्रेम प्रसंग नही पाले जाते है , और जहा प्रेम करते है वहा से ग़लत फायदा कमाने कि कोशिश नही करनी चाहिए। जे खाने - जहा ; बॉस - रहने की जगह ; चास -खेती करना .

पड़ग्‍या खल्‍ला उडगी रेत

पड़ग्‍या खल्‍ला उडगी रेत फूल बगर जिस्‍सी होयगी रे पड़ग्‍या- पड़े हैं खल्‍ला - जूते उडगी- उड़ गई या झड़ गई फूल बगर - फूल की तरह जिस्‍सी - जैसी जूते पड़ने से शरीर पर पड़ी धूल झड़ गई। इससे वह खुद को फूल की तरह हल्‍का महसूस कर रही है। यह कहावत आमतौर पर बड़ी बूढी महिलाएं नई छोरियों को व्‍यंग में कहती है। इसका अर्थ यह है कि डांट-फटकार खाने के बाद भी लड़की पर असर नहीं है। उलटे वह अधिक उत्‍श्रंखल हो रही है। यहां धूल शर्म और फूल की तरह हलकापन ढिठाई के लिए काम में लिया गया है।

एक कहावत बंगाल की

साग दिए माछ चापा जाय ना । अर्थात साग से मछली पकाने की खुसबू को आप ढक नही सकते। कहानी कुछ इस तरह से है किएक महिला मछ्ली पका रही थी , तभी उसके घर मेहमान आगये। महिला ने जल्दी में मछली को छिपाने के लिए उसपर साग छोक दिया ,पर मछ्ली कि खुशबू को वो छिपा नही पाई .प्राययह कहावत प्रेम करने वालो के सन्दर्भ में कहा जाता है ,जब वो प्रेम को दोस्ती के दुप्पट्टे से ढकने कि कोशिश करते है। माछ - मछ्ली , चापा - ढकना .दिए - द्वारा

एक कहावत बिहार की

नया नौ दिन , पुराना सौ दिन इसे आप इस सन्दर्भ में ले सकते है कि ओल्ड इस गोल्ड "। नए विचारो, कवियों के सन्दर्भ में भी बात कही जा सकती है कि पुराने कवि- रहीम ,तुलसी , कबीर आज भी प्रासंगिक है जबकि नए कवियों कि फसल कब आती है कब जाती है कुछ पता ही नही चलता।

चार दिन के गईले, सुग्गा मोर बन के अइले

चार दिन के गईले, सुग्गा मोर बन के अइले| भोजपुरी कहावत कोई व्यक्ति जब चार दिन शहर में रह कर वापस गाँव जाए और चाल ढाल से ख़ुद को शहरी बताये तो उसके लिए यह कहावत कही जाती है| चार दिन शहर में रहकर सुग्गा (तोता) ख़ुद को मोर समझने लगा|

एक bihari कहावत

पुतके पाव पलना में ही दिखे है। अर्थात होन्हर वीरवान के होत चिकने पात ,अगर किसी बच्चे में कुछ अच्छे या बुरे गुण हो तो वो बचपन से ही प्रगत होने लगते है। वो गुण छिपते नही है, जैसे श्री कृष्ण के गुण बचपन से ही प्रगटहोने लगे थे।

एक bihari कहावत

बौआ बगल में , ढ्न्डोरा नगर में। अर्थात बच्चा घर पर ही है , और सारे शहर में शोर होगया है की बच्चा खो गया । ये भी कह सकते है कि जो चीज खो गयी हो उसे पहले घर में ढूढ़ नी चाहिए , फिर सारे शहर में शोर करना चाहिए।

एक और bihari कहावत

गुड खाए , गुलगुला से परहेज करे। अर्थात गुड तो खाते है पर गुड से बनी मिठाई गुलगुला नही खाए गे । यानि की कह सकते है रिश्वत तो खाए गे पर रूपये की जगह तोहफा लेगे .या यू कह सकते है चिक्केन नही खाए गे पर चिक्केन सूप peeye गे .

घर का जोगी जोगडा़

घर का जोगी जोगडा़, आन गाँव का सिद्ध "दूर का ढोल सुहावन" के तर्ज पर यह कहावत गढी गयी है। जोगी (योगी) की अपने घर मे कद्र नहीं होती, लेकिन किसी दुसरे (आन) गाँव में उसे सिद्ध महात्मा बताया जाता है।

उजडल गाँव में ऊँट आइल

उजडल गाँव में ऊँट आइल, लोग कहे बलबल|| किसी उजडे हुए गाँव में जहाँ किसी ने ज्यादा दुनिया नही देखी है वहां अगर ऊँट आएगा तो लोग कहेंगे ये बलबल है,(ऊँट मुहं से बल बल की आवाज निकालता है!!)

एक और bihari कहावत

बात छिले से रुखा होए , लकडी छिले से चिक्कन । मतलब बात को जितना बढाये गे उतनी ही कड़वी हो गी , पर लकडी को जितना ही रगड गे वो उतनी ही सुंदर होगी .अर्थात चीजो की अलग -अलग प्रकृति पर निर्भर करता है कि उसके साथ एक जैसा सलूक हो रहा है और उसके परिणाम अलग आ रहे है।

चलनियऊ बोले, जामें बहत्तर छेद

सूप तो सूप, चलनियऊ बोले, जामें बहत्तर छेद। इसका तात्पर्य ऐसे लोगों से है जो ख़ुद में कुछ भी नहीं होते पर दूसरों के सामने ख़ुद को साबित करने में लगे रहते हैं। इसका एक अर्थ ये भी है किअपने दोषों को देखे बिना दूसरों के दोष बताने की कोशिश करते रहते हैं।

सूप और छ्लनी

"सूप दूसे छलनी के जेकरा बह्त्तर गो छेद " यह भी एक बिहारी कहावत है जिसके पीछे कहानी कुछ ऐसी है कि एक बार सूप और छलनी में लडाई हो गई , तो छलनी ने सूप से कहा कि तुम्हारे तो सारे बदन पर छोटे- छोटे छेद है.तो सूप ने कहा की तुम्हारे बदन में तो मुझसे भी बड़े छेद है। इसका तात्पर्य यह है की कोई ग़लत इन्सान जब किसी दूसरे ग़लत इन्सान की बुराई करता है तो मामला इस कहावत का बनता है। जैसे एक अपराधिक छवि वाला नेता जब दूसरे नेता का अपराधिक रिकॉर्ड गिनवा रहा होता है तो स्थिति इस कहावत की बनती है।

कुंजरिया अपने बेर खट्टे न बताये

कुंजरिया अपने बेर खट्टे न बताये। कुंजरिया=सब्जी बेचने वाली भावार्थ- इसका अर्थ है किकोई भी अपनी वस्तु, अपनी चीज की बुराई नहीं करता है। ये ठीक उसी तरह है जैसे कि सब्जी बेचने वाली अपने बेरों को कभी भी खट्टा नहीं बताती है।