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Showing posts from December, 2009

मूंछ उखाड़े मुर्दा हल्को न होवे

मूंछ उखाड़े मुर्दा हल्को न होवे । =============== इस कहावत का अर्थ इस रूप में लगाया जा सकता है कि छोटे-छोटे काम निपटाने से किसी बड़े काम में सफलता नहीं मिलती। बड़े काम को करने में इस तरह के छोटे-छोटे प्रयासों से मदद भी नहीं मिलती। इस तरह के छोटे काम निरर्थक ही कहे जा सकते हैं।

घर में नईंयाँ दाने, अम्मा चली भुनाने

घर में नईंयाँ दाने, अम्मा चली भुनाने। --------------------- नईंयाँ - नहीं हैं --------------------- यह कहावत ऐसे लोगों पर सटीक सिद्ध बैठती है जो स्वयं में कुछ न होने के बाद भी अपने आप में बहुत कुछ होने का दम भरते हैं। इसे दूसरे रूप में ऐसे भी देखा जा सकता है कि व्यक्ति कैसे झूठी शान दिखाता घूमता है।
छाया बखत की चाहे कैर ही हो, चलना रास्ते का चाहे फेर ही हो, बैठना भाइयों में चाहे बैर ही हो