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घर में नईंयाँ दाने, अम्मा चली भुनाने

घर में नईंयाँ दाने,
अम्मा चली भुनाने।

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नईंयाँ - नहीं हैं
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यह कहावत ऐसे लोगों पर सटीक सिद्ध बैठती है जो स्वयं में कुछ न होने के बाद भी अपने आप में बहुत कुछ होने का दम भरते हैं। इसे दूसरे रूप में ऐसे भी देखा जा सकता है कि व्यक्ति कैसे झूठी शान दिखाता घूमता है।

Comments

दुश्यंत जी ने " घरमें नही दाने अम्मा चली भुनाने "इस कहावत को एक शेर का रूप दिया था .." कल नुमाइश में मिला था वो चीथड़े पहने हुए/ मैने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है "
ब्‍लॉगिंग का यही मजा है कई बार टिप्‍पणियां पोस्‍ट से भी अधिक रोचक बन पड़ती है। कुमारेन्‍द्र जी और शरदजी दोनों का आभार...
Udan Tashtari said…
शरद जी ने व्याख्या में चार चांद लगा दिये, जय हो!!
शरद जी, आपका भी जवाब नहीं. वाकई आपकी टिप्पणी ने हमारी पोस्ट को रोशन कर दिया. आभार
amit said…
Aakhir Kyon घर में नईंयाँ दाने, अम्मा चली भुनाने
Pauranik Kathayenthank for articals

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एक कहावत

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जाट, जमाई भाणजा रेबारी सोनार:::

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चन्द पंजाबी कहावतें

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नंगा और नहाना

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