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चैत चना, वैशाख बेल - एक भोजपुरी कहावत

चइते चना, बइसाखे बेल, जेठे सयन असाढ़े खेल 
सावन हर्रे, भादो तीत, कुवार मास गुड़ खाओ नीत 
कातिक मुरई, अगहन तेल, पूस कर दूध से मेल 
माघ मास घिव खिंच्चड़ खा, फागुन में उठि प्रात नहा
ये बारे के सेवन करे, रोग दोस सब तन से डरे।

यह संभवतया भोजपुरी कहावत है। इसका अर्थ अभी पूरा मालूम नहीं है। फिर भी आंचलिक स्‍वर होने के कारण गिरिजेश भोजपुरिया की फेसबुक वॉल से उठाकर यहां लाया हूं। 

Comments

kshama said…
Kahawat ka arth samajh me aata to badhiya hota!
पोस्‍ट करने के बाद पता चला कि ये कहावत न होकर, घाघ और भड्डरी के दोहे हैं, जो मौसम के बारे में जानकारी देते हैं। बिहार में इन्‍हें कहावतों के रूप में भी काम में लिया जाता है।
रचना said…
aap ka yae blog achchha lagaa
@रचना
धन्‍यवाद रचनाजी, एक कम्‍युनिटी ब्‍लॉग के रूप में शुरू किया गया था, अब इसमें कम पोस्टिंग हो रही है। अब फिर से ध्‍यान देना शुरू करूंगा। अगर आप भी इसमें रुचि रखती हों तो आपको लेखक के रूप में जोड़ने पर खुशी होगी...
Piyush k Mishra said…
चैत्र महीने में चना खाना, बैसाख में बेल, जेठ में शयन(घर से ना निकलना)आसाढ़ में खेलना, सावन में हराड, भादों में तीता, आश्विन में रोज़ गुड़ खाना, कार्तिक में मूली, अगहन में तेल लगाना,पूस में दूध पीना, माघ में घी और खिचड़ी खाना और फागुन में सुबह सुबह उठ कर नहाना. जो ये सब करता है उसे कोई भी रोग नहीं होता.
Unknown said…
ye kavi ghagh ki kahawat hai. isme hindi maheene ke hisab se khanpan v achar vichar rakhane ki bat kahi gayee hai. isme kaha gaya hai ki chait me chana khana chahiye v vaishakh me bel ka. jyeshth me achchhi need lena chahiye, asadh me kheti bari ka kam karna chahiye. savan me harr ka sevan, bhadrapad me masaledar v tikha bhojan karna chahiye,kwar yani ashwin me gud ka sevan, kartik me mooli, agahan me tel ki malish v tel se bani chije khani chahiye. pus yani paus me doodh v usase bani chije, magh me desi ghee v khichadi ka sevan karna chahiye. isake alawa falgun me roj suvah uth kar suryoday ke pahle snan kar lena chahiye. aisa karne wale hamesha nirog rahte hai. abhayanand shukla. rashtriya sahara. lucknow
amit said…
Aakhir Kyonचैत चना, वैशाख बेल - एक भोजपुरी कहावत
Pauranik KathayenTHANKS FOR ARTICALS
दो चीजें खास हैं इसमें तेल का मतलब सिर्फ सरसों का तेल ही है, एवं तित का मतलब हुआ तीखी मिर्ची का प्रयोग
Anonymous said…
कोई भी विद्वान पाठक इन कहावत और मुहावरे को बुरा नहीं मानना चाहिए।
ये सब कहावत ही हैं, लेकिन पुराने जमाने में जब मानव अनपढ़ होता था, तब वह इन कहावत और मुहावरे को रट लिया करते थे और जीवन की समस्याओं का समाधान इन कहावतों में मिलता था।
एक कहावत इस प्रकार से है:-----
जाट जंवाई भांणजा रेबारी सुनार
पाणीं मायलों काछबो अष्टम दगा बाज़।। ये आठ धोखेबाज होते हैं।
जीवन में जाट दामाद भांणजा रेबारी सुनार
पानी (नदी के बहाव का पानी कभी भी धोखा दे सकता है।)
मायलों (मनुष्य का अपना अंतर मन कभी भी दगा दे सकता है।)
कछूवा पर आप कितनी भी नजर रखो, वह आप की नजर को धोखा दे कर, नजरों से ओझल हो जाता है, धोखा दे जाता है।।

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