Skip to main content

Posts

Showing posts from November, 2008

नसे, उपासे, मांसे, तीनों सर्दी नाशै।

नसे, उपासे, मांसे, तीनों सर्दी नाशै। नसे- नशा, उपासे-उपवास, मांसे- मांसाहार, नाशै- नाश करने वाला. इस बार भोजपुरी अंचल से चुन कर लाया हूँ वो कहावत जो इस मौसम पर काफी सटीक बैठती है। नसे, उपासे, मांसे, तीनों सर्दी नाशै। अर्थात् नशा, उपवास और मांसाहार ये तीन सर्दी से लड़ने में सहायक सिद्ध होते हैं। अब इस कहावत में कितनी सच्चाई है यह तो आजमाने वाले ही बता सकते हैं, मगर कही-न-कहीं के अनुभवों की झलक तो इसमें है ही।

जाका पड्या स्‍वभाव

जाका पड़्या स्‍वभाव जासी जीव सूं नीम न मीठो होयसी सींचो गुड़ घी सूं जासी : जाएगा जीव- शरीर जाका: जिसका होयसी : होगा जिसका जैसा स्‍वभाव पड़ा हुआ है वह अंत तक वैसा ही रहेगा। भले ही नीम को गुड़ और घी से ही क्‍यों न सींच दिया जाए उसमें मीठे फल नहीं निकल सकते। हिन्‍दी में इसके लिए कहा जाता है कि मिट्टी का रंग कभी बदलता नहीं है। इसी तरह और भी कई कहावतें लोगों के न बदलने वाले स्‍वभाव को लेकर कही गई है। यह रंग राजस्‍थान का है। अन्‍य अंचलों में भी इसके लिए कहावतें होंगी।

मेढ़ा जब पीछे हटे

मेढ़ा जब पीछे हटे, वो ना रहे छपकन्त, बैरी जब हँस के बोले, तब संभारो कंत। (मेढ़ा= सिंग वाली भेड़, छोटा भैंसा या साँढ, छपकन्त-बिना मारे नहीं रहने वाला, बैरी- शत्रु) भोजपुरी के सहज, सरल और व्यावहारिक अनुभवों के पिटारे से इस बार यह कहावत, जिसमें व्यक्ति का बाह्य आचरण देख उसकी नियत को भांप लेने का संदेश छुपा है। इसका तात्पर्य है की यदि किसी व्यक्ति को देख साँढ अपने स्वाभाव के विपरीत पीछे हटे तो इससे समझ लें की वह अब वार करने ही वाला है। इसी प्रकार यदि कोई शत्रु आपसे मीठी जुबान में बात करता हुआ अपनी शत्रुता से पीछे हटने का भ्रम दे तो सावधान हो जायेंया संभल जायें क्योंकि वो किसी नए प्रहार की योजना बना रहा है। निश्चित ही इतनी गूढ़ बातको कितनी सरलता से कह दिया गया है इस कहावत में।

कर में लागल आग ?

भोजपुरी जितनी मीठी भाषा है उतनी ही मीठी हैं इसकी कहावतें; जिनसे यहाँ के ग्राम्य जीवन के अनुभव झलक पड़ते हैं. ऐसी ही एक कहावत है - "घर के मारल बन में गइली, बन में लागल आग। बन बेचारा का करे कि कर में लागल आग ?" अर्थात यदि तकदीर ही अपने पक्ष में न हो (हाथों की लकीरें) तो आदमी चाहे घर में रहे या वन में परेशानियाँ पीछा करती ही रहती हैं. इसी की एक समानार्थक कहावत है- " जाओ चाहे नेपाल, साथ जायेगा कपाल". यानि- चाहे कहीं भी जाओ आपकी किस्मत आपका साथ नही छोड़ने वाली.

उत्तम बुद्धि बाणिया

उत्तम बुद्धि बाणिया पच्‍छम बुद्धि जाट बामण सपम्‍मपाट सबसे अधिक अक्‍ल बणिए में होती है, सबसे कम जाट में और ब्राह्मण दिमाग से सपाट होता है। यहां अक्‍ल लगाने के हिसाब से वर्गीकरण किया गया है। वणिक काफी आगा पीछा सोचकर काम करता है और काफी अधिक सही निर्णय लेता है। जाट या किसान आगा पीछा सोचे बिना निर्णय ले लेता है। और बामण यानि ब्राह्मण सोचता ही नहीं है। आमतौर पर यह कहावत ब्राह्मण परिवारों में कही जाती है। इसका इस्‍तेमाल तब होता है जब कोई व्‍यक्ति निर्णय लेकर भी उस निर्णय के बारे में कोई स्‍पष्‍ट जस्टिफिकेशन नहीं दे पाता है।