Skip to main content

Posts

Showing posts from 2010

चन्द पंजाबी कहावतें

1. जून फिट्ट् के बाँदर ते मनुख फिट्ट के जाँजी (आदमी अपनी जून खोकर बन्दर का जन्म लेता है, मनुष्य बिगड कर बाराती बन जाता है. बारातियों को तीन दिन जो मस्ती चढती है, इस कहावत में उस पर बडी चुटीली मार है.) 2. सुत्ते पुत्तर दा मुँह चुम्मिया न माँ दे सिर हसा न न प्यौ से सिर हसान (सोते बच्चे के चूमने या प्यार-पुचकार प्रकट करने से न माँ पर अहसान न बाप पर) 3. घर पतली बाहर संगनी ते मेलो मेरा नाम (घर वालों को पतली छाछ और बाहर वालों को गाढी देकर अपने को बडी मेल-जोल वाली समझती है) 4. उज्जडियां भरजाईयाँ वली जिनां दे जेठ (जिनके जेठ रखवाले हों, वे भौजाईयाँ (भाभियाँ) उजडी जानिए)
पिता जाये तो छत जात है भाई जाये तो बल मंदिर सुना जब होय है जब जात है माय इसका मतलब है जब पिता चले जाते है यानि मर जाते है तो घर की छत ख़तम हो जाती है,यानि सुरक्षा. भाई मर जाते है यानि चला जाता है तो बल यानि शक्ति चली जाती है. मंदिर यानि घर सुना जब हो जाता है जब माँ की मृतुय हो जाती है.
चिलम तमाखू हुक्का , साहब चोर उचक्का !! यह कहावत बुंदेलखंड के खंगार काल से जुडी है यहाँ उपयुक्त साहब शब्द ने यवन शब्द का स्थान ग्रहण किया है . बुन्देली जन मानस के दिमाग में उस समय तक यह धरना थी की यवन चोर उचक्के होते हैं इनसे किसी तरह का व्यवहार नहीं रखना है . बाद में यही कहावत अफसर वर्ग के लिए प्रयोग में लाई जाने लगी ..
करवा कुम्हार कौ घी जजमान को.  लगे ना बाप को स्वाहा ! हमारे बुंदेलखंड में जब कोई दुसरे के संसाधनों का बेतरतीब अनुचित उपयोग अपने हित में करता है तो कहते हैं कि  करवा कुम्हार कौ घी जजमान को.  लगे ना बाप को स्वाहा
बामुन  कुत्ता   नाऊ  जात देख गुर्राऊ !!! भावार्थ :- ब्राह्मण  कुत्ता और नाई  अपनी जाति के लोगों से  स्वाभाविक इर्ष्या करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि स्वजातीय उनका हिस्सा ना ले ले !!!!

olam maasi dhamm

ओलम मसि अधम्म  बाप पढ़े ना हम्म !! भावार्थ :- यूँ तो इस बुन्देलखंडी कहावत को संस्कृत के वाकया ॐ नमः सिद्धं , का अपभ्रंस माना जाता है . किन्तु यह कहावत बुंदेलखंड  के खंगार राजवंश जुडी है . खंगार काल  में बुंदेलखंड जुझौती प्रदेश के नाम से जाना जाता था . खंगार  राजा जुझारू संस्कृति के  पालक पोषक थे . जिनके स्वाभिमान के किस्से बुंदेलखंड में गाये जाते है . तो इस कहावत का अर्थ है कि अरबी फारसी अधम ( अपवित्र , नीच  ) लोगो कि भाषा है इसको ना हमारे पूर्वजो ने पढ़ा है  ना हम पढेंगे क्योंकि ऐसा  करने से हम भी अधम ( अपवित्र ,  नीच  ) हो जायेंगे !!!!!
  जाकी छाती जमे न बार , उनसे रहना तुम हुशियार !! तात्पर्य -- जिस आदमी के सीने में बाल नहीं होते उससे सावधान रहना चाहिए क्योंकि वह आदमी कठोर ह्रदय वाला क्रोधी कपटी कुटिल और चालक होता है 

सुआ ही काफी है...

बिल्ली नै ताकले रो डाम इ घणो..  बिल्ली के लिए तलवार कि जरुरत नहीं होती, सुआ गरम कर लगा दो काफी है यह पृथ्‍वी के बज से उठाया है... 
  हर्र लगे ना फटकारी रंग चोखा होय ! तात्पर्य -- यह कहावत मितव्ययता प्रदर्शित करती है , काम संशाधनो का प्रयोग करके उत्तम फल प्राप्त करना !

तीन बुलाये तेरह आये......

तीन बुलाये , तेरह आये , दे दाल में पानी । -------------------------------- इसका सीधा सा अर्थ ये है कि कम की व्यवस्था होने पर अधिक खर्च करना पढ़ जाए तो उसी में कुछ जोड़-तोड़ कर लेना चाहिए। हो सकता है कि किसी समय में इसका अर्थ मितव्ययता से लगाया जाता हो?

दमडी की बुलबुल टका हलाल.........

बहुत दिन हुए इस ब्लाग पर कुछ लिख नहीं पाया। आज अचानक से एक पुरानी कहावत याद आ गई तो सोचा कि क्यों न इसे आप लोगों को भी अवगत कराया जाए।   जहाँ देखहूं निज अधिक बिगार, लघु लाभहु कर तजहुँ विचार  नहिं यह बुद्धिमान की चाल, "दमडी की बुलबुल टका हलाल" ।। अब कहावत आप लोगों नें पढ ली है तो लगे हाथ इसका अर्थ भी बता ही दीजिए। भई ऎसा मत सोचिएगा कि मैं कोई पहेली पूछ रहा हूँ या कि मैने आप लोगों के ज्ञान की कोई परीक्षा लेने का मन बनाया है। ऎसा कुछ नहीं है---वो तो बस वैसे ही ज्यादा कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा था तो सोचा कि जितना लिख दिया, उसे ही पोस्ट कर देते हैं। बाकी सब समझदार लोग हैं---खुद ही समझ लेंगें :-) अरे हाँ, एक ओर कहावत याद आ गई, वो भी पढते चलिए:---- जो कछु लखि न परे निज हानि, तौ समाज को तजहु न कानि क्यों बिन स्वारथ सहिये खिल्ली, "पंच कहैं बिल्ली तौ बिल्ली"
चूल्हे में हगें शनिचर खां खोर दें ! तात्पर्य - अपना दोष दूसरे पर डालना .
अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम , दास मलूका कह गए सब के दाता राम .. तात्पर्य -  अजगर किसी की नौकरी नहीं करता और पक्षी भी कोई काम नहीं करते भगवान सबका पालन हार है इसलिए कोई काम मात करो भगवान स्वयं ही देगा आलसी लोगों के लिए मलूक दास जी की ये पंक्तियाँ रामबाण है !
ऊधौ का देना ना माधौ का लेना ! तात्पर्य - किसी का कर्ज ना होना ! सम्बन्ध- नौ नगद ना तेरह  उधार !
पाल पाल तोरे जी खां काल ! तात्पर्य - सांप कभी भी आश्रय दाता को मार सकता है इसलिए उसे नहीं पालना चाहिए ! 
काग घोंसला मारिये , मसि भींजत परिहार ! जाट जरुरी मारिये , घुट्नन चलत खंगार ! ! तात्पर्य - काग (कौआ) परिहार, जाट और खंगार ये चार चतुर चालक शत्रु होते हैं अगर इनसे बैर है तो कौए को घोसले में ही , परिहार को मूंछ निकलने से पहले , जाट को जब भी मौका मिले और खंगार को जब वह बच्चा हो तब ही मार देना चाहिए  बर्ना देर हो जाएगी !  
कहे कबीर जमाना छानियाँ , भक्त ना देखे सुनार बानियाँ ! तात्पर्य - सुनार बानियाँ लोग कभी भक्त नहीं होते !