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Showing posts from February, 2009

एक कहावत

नाचे न जाने अगनवा टेढा यानि नाचना तो आता नही है और दोष मन्धरहे है किसी के घर के आँगन पर की जी आपका तो आँगन टेढा है हम नाचे तो नाचे कैसे। ऐसा हमारे जीवन में भी होता है की कोई व्यक्ति कामकरना नही जानता पर वो दोष किसी दूसरे पर मन्ध देता है या किसी सामान या परिस्थिति पर मंथ देता है।

एक कहावत

अति सर्वत्र वर्जिते । अति यानि जरूरत से ज्यादा ,हर कही वर्जित होता है यानि मना । क्योकी यह कहते है - सीता क्यो हरी गई , क्यो की वो अत्यधिक सुंदर थी, रावन क्यो मारा ,क्यो की उसमे बहुत अंहकार था.इस लिए अपने जीवन में हमें बैलेंस रखना चाहिए । किसी भी चीज के फीचे जयादा नही दौड़ना नही चाहिए।

फरसे का लैणायत

यह कहावत देखने में ऐसा लगता है कि खराब शब्‍दों से बनी है लेकिन है मजेदार और ज्ञान देने वाली भी है।  गांड रो गड़ और फरसे रो लैणायत   गांड- गुदा द्वार  गड़ - जो चुभता है  फरसा- घर के सामने का स्‍थान  लैणायत- वह जिसने आपको उधार दिया है  इसका अर्थ यह हुआ कि गुदा में चुभने वाला यानि मलद्वार का मस्‍सा और घर के सामने रहने वाला लेनदार कभी नहीं होना चाहिए। दोनों नियमित रूप से दुख देते हैं। मस्‍सा रोजाना सुबह तंग करेगा तो लेनदार घर से निकलते घुसते मुस्‍कुराएगा तो भी ऐसा लगेगा कि उधार के रुपए वापस मांग रहा है। इस कारण दोनों की नहीं रखने चाहिए। इसमें दोनों की तुलना भी है और दोनों से बचने की सीख भी दी गई है। 

एक bihari कहावत

दिन भर औरे बौरे , रात को दिया लेकर दौड़े यानि जब काम करने का समय होता है तब यहाँ -वहा जा कर समय नष्ट कर देते है । पर जैसे ही सर पर काम सवार हो जाता है ,तब जमीं आसमान एक कर दिया जाता है उस काम को निपटने के लिए।चुनाव के समय नेता अपने चुनाव kshtra ke liye यही काम करते है।

एक bihari कहावत

जेकरा भातर पुच्बे न करे , ओकरा मागवा में भर- भर सिन्दूर यानि जिसका पति अपनी पत्नी को प्यार नही करता है , उसकी मांग में पुरा सिन्दूर भरा रहता है.यानि वो ज्यादा दिखाना चाहती है कि उसका पति उसे ज्यादा प्यार करता है। यह बात इस सन्दर्भ में भी कही जा सकती है कि जो व्यक्ति बहुत दुखी रहता है , वो और जयादा हसने कि कोशिश करता है या हँसता है .

एक bihari कहावत

भाड़ में जाए दुनिया , हम बजाई हरमुनिया मतलब कि इसमे jindadil /beparwah एक इन्सान के बारे में कही गयी है। तमाम मुसीबतो के बीच में ek इन्सान जब थक जाता hai तब वो कहता hai कि दुनिया जाए जहनुम में ,मैअपना काम / मौज करता हु।

ज्ञान दर्पण से मिली कहावतें

आज ज्ञान दर्पण ब्‍लॉग में कुछ अच्‍छी कहावतें देखीं। आप भी उनका रसास्‍वादन कर सकते हैं। यह ब्‍लॉग रतन सिंह शेखावत लिखते हैं और अपने आप में बहुत खूबसूरत ब्‍लॉग है।  कुछ राजस्‍थानी कहावतें पोस्‍ट में उन्‍होंने  1  घोड़ा रो रोवणौ नीं,घोड़ा री चाल रौ रोवणौ है 2  म्है ही खेल्या अर म्है ई ढाया  3  आज री थेप्योड़ी आज नीं बळे कहावतें शामिल की हैं। तीनों कहावतें बेहद खूबसूरत हैं और ज्ञानवर्द्धक भी। 

अगहन, पूस, माघ, फागुन.....

अगहन माह खाओ तेल, पूस में करो दूध से मेल। माघ मास घी-खिचड़ी खाए, फागुन उठके सुबह नहाय। बिहारी जनमानस में कहावतों के माध्यम से भी अलग-अलग मौसम के लिए खान-पान के सबंध में सुझाव दिए गए हैं। ऐसी ही एक कहावत के अनुसार अगहन माह में तेल युक्त भोजन, पूस में दूध के पदार्थ, माघ में घी-खिचड़ी और फागुन में प्रातः काल स्नान स्वास्थ्य के लिए उत्तम है।

एक कहावत बिहार की

अगुली पकड़ क , पंहुचा पकड़ना यानि कि किसी की अंगुली पहले पकड़ लो फिर धीरे- धीरे उसका पूरा हाथ अपनी गिरफ्त में लेलो। ये प्राय तब कहा जाता था कि मान लो किसी आदमी को बैठने भर की जगह दी गयी हो और वो पूरा पसर जाए मौके का फायदा उठा कर।

एक bihari कहावत

रूपवाली रोये भागवाली खाए यानि कि जिस महिला के पास रूप हो पर उसके पास भाग्य नही हो तो उसका पति न मानेतो बेचारी का जीवन रोते बीतता है, पर कोई महिला जिसका भाग्य बहुत तेज हो पर वो उतनी सुंदर न हो पर उसका पति उसे माने तो उसका जीवन बहुत सुंदर बीतता है.उस ज़माने के हिसाब से ये कहावत बनी थी जब स्त्री का जीवन सिर्फ़ पति कि स्वीकारोक्ति पर निर्भर रहता था। इसमे भाग्य कि महत्ता को स्वीकार गया है.यह बात सर्वविदित है.

बिना इच्‍छा के...

मन बारां पोवणा घी घालूं कण तेल   बारां- बिना  पोवणा- बनाना जैसे खाना या कोई पकवान या रोटी बनाना  घालूं- डालूं  कण का इस्‍तेमाल या के रूप में हुआ है  बिना मन के बनाना है हलवे में घी डालूं या तेल डालूं।  इसका अर्थ हुआ कि जो काम करने की इच्‍छा ही नहीं है उसे कैसे अच्‍छा करने की कोशिश हो सकती है। उसके लिए तो यही दिमाग में आएगा कि घी डालें या तेल बनना तो खराब ही है। हमारे सामने में ऐसा सवाल कई बार आता है जब हमारे ऊपर काम बेवजह लाद दिया जाता है और हम बिना इच्‍छा के कर रहे होते हैं। तब यही बात दिमाग में आती है। 

एक कहावत

निकले हरिभजन को , ओटन लागल कपास मतलब निकले तो थे हरि यानि की भगवन का नाम स्मरण करने के लिए पर रस्ते में निकलने के बाद कपास यानि की रुई धुनने लगे। इसका दूसरा मतलब यह भी होता है कीआप निकले तो घर से थे कुछ काम करने के लिए पर करने कुछ और लग गए। ये विद्यार्थी , युवा, पत्रकार, नेता हम सभी पर लागू होता है.

एक bihari कहावत

सास से बैरी पुतोहिया से नाता , येही कुल रहिये जईबे बिधाता । यानि सास से तो बैर है यानि दुश्मनी पर उसकी बहु से प्रेम .इसका मतलब शायद यह भी होता हो कि किसी घर के बड़े से तो दुश्मनी करो पर उसी घर से छोटे सदस्य से दोस्ती करो ताकि उस घर का टोह लिया जासके