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पड़ग्‍या खल्‍ला उडगी रेत

पड़ग्‍या खल्‍ला उडगी रेत
फूल बगर जिस्‍सी होयगी रे

पड़ग्‍या- पड़े हैं
खल्‍ला - जूते
उडगी- उड़ गई या झड़ गई
फूल बगर - फूल की तरह
जिस्‍सी - जैसी

जूते पड़ने से शरीर पर पड़ी धूल झड़ गई। इससे वह खुद को फूल की तरह हल्‍का महसूस कर रही है। यह कहावत आमतौर पर बड़ी बूढी महिलाएं नई छोरियों को व्‍यंग में कहती है। इसका अर्थ यह है कि डांट-फटकार खाने के बाद भी लड़की पर असर नहीं है। उलटे वह अधिक उत्‍श्रंखल हो रही है। यहां धूल शर्म और फूल की तरह हलकापन ढिठाई के लिए काम में लिया गया है।

Comments

amit said…
Aakhir Kyon पड़ग्‍या खल्‍ला उडगी रेत
Pauranik Kathayenthanks for articals

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चैत चना, वैशाख बेल - एक भोजपुरी कहावत

चइते चना, बइसाखे बेल, जेठे सयन असाढ़े खेल  सावन हर्रे, भादो तीत, कुवार मास गुड़ खाओ नीत  कातिक मुरई, अगहन तेल, पूस कर दूध से मेल  माघ मास घिव खिंच्चड़ खा, फागुन में उठि प्रात नहा ये बारे के सेवन करे, रोग दोस सब तन से डरे। यह संभवतया भोजपुरी कहावत है। इसका अर्थ अभी पूरा मालूम नहीं है। फिर भी आंचलिक स्‍वर होने के कारण गिरिजेश भोजपुरिया की फेसबुक वॉल से उठाकर यहां लाया हूं। 

एक कहावत

न नौ मन तेल होगा , न राधा नाचेगी । ये कहावत की बात पुरी तरह से याद नही आ रही है, पर हल्का- हल्का धुंधला सा याद है कि ऐसी कोई शर्त राधा के नाचने के लिए रख्खी गई थी जिसे राधा पुरी नही कर सकती थी नौ मन तेल जोगड़ने के संदर्भ में । राधा की माली हालत शायद ठीक नही थी, ऐसा कुछ था। मूल बात यह थी कि राधा के सामने ऐसी शर्त रख्खइ गई थी जो उसके सामर्थ्य से बाहर की बात थी जिसे वो पूरा नही करपाती। न वो शर्त पूरा कर पाती ,न वो नाच पाती।

जाट, जमाई भाणजा रेबारी सोनार:::

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चन्द पंजाबी कहावतें

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नंगा और नहाना

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