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बिना इच्‍छा के...

मन बारां पोवणा घी घालूं कण तेल 

बारां- बिना 
पोवणा- बनाना जैसे खाना या कोई पकवान या रोटी बनाना 
घालूं- डालूं 
कण का इस्‍तेमाल या के रूप में हुआ है 

बिना मन के बनाना है हलवे में घी डालूं या तेल डालूं। 
इसका अर्थ हुआ कि जो काम करने की इच्‍छा ही नहीं है उसे कैसे अच्‍छा करने की कोशिश हो सकती है। उसके लिए तो यही दिमाग में आएगा कि घी डालें या तेल बनना तो खराब ही है। हमारे सामने में ऐसा सवाल कई बार आता है जब हमारे ऊपर काम बेवजह लाद दिया जाता है और हम बिना इच्‍छा के कर रहे होते हैं। तब यही बात दिमाग में आती है। 

Comments

अच्‍छी जानकारी मिली....
Gyan Darpan said…
बहुत अच्छा प्रयास है |
कहावतों में एक वाक्य में ही बहुत कुछ कह दिया जाता है यही इनकी खासियत होती है | ऐसी ही कहावतों का एक कोष राजस्थानी ग्रन्थागार जोधपुर ने प्रकाशित किया है विजय दान देथा द्वारा लिखित यह राजस्थानी- हिन्दी कहावत कोष ८ भागों में है जिनमे १५०२८ मूल राजस्थानी कहावतों की मार्मिक हिन्दी व्याख्या की गई है | यह अपूर्व ग्रंथमाला अविस्मरनीय आनंद का सागर है !
अच्‍छी जानकारी मिली....
बिलकुल सही कहा जी.
धन्यवाद
amit said…
Aakhir Kyonबिना इच्‍छा के
Pauranik KathayenTHANKS FOR ARTICALS