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खईता भीम तऽ हगता सकुनी ?

इस कहावत के शब्द आपको थोड़े असभ्य और असाहित्यिक लग सकते हैं पर कहावतों का असली मजा तो उनके ठेठपन में ही है न! भारत के गांवों में आज भी बातों कों बेबाक और बेलौस तरीके से कहा जाता है। कोई लाग-लपेट नहीं कोई लीपा-पोती नहीं। तो आइये कहावत पर चलें...

खईता - खाएंगे, भीम - महाभारत के एक पात्र, तऽ - तो,
हगता -
मल त्याग करेंगे, सकुनी - महाभारत के एक पात्र

अर्थात जो कर्म करता है वही उसका फल भी पाता है. फल में किसी और की हिस्सेदारी नहीं होती. कर्म अच्छा हो या बुरा उसका फल आपको अकेले ही भोगना है.

सतीश चन्द्र सत्यार्थी

Comments

जैसा करेगे ,वैसा भरेगे .
या बोया पेड़ बाबुल का तो आम कहा से होए .
कुछ ऐसा ही अर्थ इस कहावत का भी है .
ठेठ मगर सही कहावत है ये.
बहुत खूब। हर कोई ऐसी ही कहावतें इस ब्‍लॉग में देखना चाहता है। जो कहावतें किताबों या हिन्‍दी के माध्‍यम से पहले से ही शेयर हो चुकी हैं उन्‍हें यहां देने का अधिक फायदा नहीं है लेकिन ठेठ देसी अंदाज की एक भी कहावत इस ब्‍लॉग की खुशबू को बढ़ा देती है।

सराहनीय प्रयास। धन्‍यवाद।
Urmi said…
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
amit said…
Aakhir Kyonखईता भीम तऽ हगता सकुनी
Pauranik KathayenTHANKS FOR ARTICALS

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