Skip to main content

एक कहावत

जो करे sharam ,okra fute करम

यानि जो vayakti sharma -sharma कर rah jata है वो जीवन me कुछ नही कर पता है। यानि शर्म- sharam me kimat phut jati है.

Comments

Anonymous said…
और ट्रांसलिटरेशन में अर्थ का अनर्थ हो जाता है :)

Popular posts from this blog

चैत चना, वैशाख बेल - एक भोजपुरी कहावत

चइते चना, बइसाखे बेल, जेठे सयन असाढ़े खेल  सावन हर्रे, भादो तीत, कुवार मास गुड़ खाओ नीत  कातिक मुरई, अगहन तेल, पूस कर दूध से मेल  माघ मास घिव खिंच्चड़ खा, फागुन में उठि प्रात नहा ये बारे के सेवन करे, रोग दोस सब तन से डरे। यह संभवतया भोजपुरी कहावत है। इसका अर्थ अभी पूरा मालूम नहीं है। फिर भी आंचलिक स्‍वर होने के कारण गिरिजेश भोजपुरिया की फेसबुक वॉल से उठाकर यहां लाया हूं। 

एक कहावत

न नौ मन तेल होगा , न राधा नाचेगी । ये कहावत की बात पुरी तरह से याद नही आ रही है, पर हल्का- हल्का धुंधला सा याद है कि ऐसी कोई शर्त राधा के नाचने के लिए रख्खी गई थी जिसे राधा पुरी नही कर सकती थी नौ मन तेल जोगड़ने के संदर्भ में । राधा की माली हालत शायद ठीक नही थी, ऐसा कुछ था। मूल बात यह थी कि राधा के सामने ऐसी शर्त रख्खइ गई थी जो उसके सामर्थ्य से बाहर की बात थी जिसे वो पूरा नही करपाती। न वो शर्त पूरा कर पाती ,न वो नाच पाती।

जाट, जमाई भाणजा रेबारी सोनार:::

जाट जमाई भाणजा रेबारी सोनार कदैई ना होसी आपरा कर देखो उपकार जाट : यहां प्रयोग तो जाति विशेष के लिए हुआ है लेकिन मैं किसी जाति पर टिप्‍पणी नहीं करना चाह रहा। उम्‍मीद करता हूं कि इसे सहज भाव से लिया जाएगा। जमाई: दामाद भाणजा: भानजा रेबारी सोनार: सुनारों की एक विशेष जाति इसका अर्थ यूं है कि जाट जमाई भानजे और सुनार के साथ कितना ही उपकार क्‍यों न कर लिया जाए वे कभी अपने नहीं हो सकते। जाट के बारे में कहा जाता है कि वह किए गए उपकार पर पानी फेर देता है, जमाई कभी संतुष्‍ट नहीं होता, भाणजा प्‍यार लूटकर ले जाता है लेकिन कभी मुड़कर मामा को नहीं संभालता और सुनार समय आने पर सोने का काटा काटने से नहीं चूकता। यह कहावत भी मेरे एक मामा ने ही सुनाई। कई बार

चन्द पंजाबी कहावतें

1. जून फिट्ट् के बाँदर ते मनुख फिट्ट के जाँजी (आदमी अपनी जून खोकर बन्दर का जन्म लेता है, मनुष्य बिगड कर बाराती बन जाता है. बारातियों को तीन दिन जो मस्ती चढती है, इस कहावत में उस पर बडी चुटीली मार है.) 2. सुत्ते पुत्तर दा मुँह चुम्मिया न माँ दे सिर हसा न न प्यौ से सिर हसान (सोते बच्चे के चूमने या प्यार-पुचकार प्रकट करने से न माँ पर अहसान न बाप पर) 3. घर पतली बाहर संगनी ते मेलो मेरा नाम (घर वालों को पतली छाछ और बाहर वालों को गाढी देकर अपने को बडी मेल-जोल वाली समझती है) 4. उज्जडियां भरजाईयाँ वली जिनां दे जेठ (जिनके जेठ रखवाले हों, वे भौजाईयाँ (भाभियाँ) उजडी जानिए)

नंगा और नहाना

एक कहावत : नंगा नहायेगा क्या और निचोडेगा क्या ? यानि जो व्यक्ति नंगा हो वो अगर नहाने बैठेगा तो क्या कपड़ा उतारेगा और क्या कपड़ा धोएगा और क्या कपड़ा निचोडेगा। मतलब " मरे हुए आदमी को मार कर कुछ नही मिलता" । होली की शुभ कामनाये सभी को। माधवी