हम करे तो पाप, कृष्ण करें तो लीला
अर्थात् सामर्थवान के उद्दंड हरकतों को भी ज़माना हल्के से लेता हैं जबकि वही हरकत कमजोर के लिए पाप सामान होती हैं। इसके लिए कृष्ण के उदाहरण से उत्तम क्या हो सकता हैं। कृष्ण ने माखन चोरी से लेकर गोपी से छेड़-छाड तक क्या नहीं किया पर हम सब कुछ लीला मान कर पूजते हैं यदि वह सब ब्रज में किसी और ने किया होता तो उसके कारनामे हम यूँ पूजते? कहते भी हैं "समरथ को नहीं कोई दोष गोसाई..."
चइते चना, बइसाखे बेल, जेठे सयन असाढ़े खेल सावन हर्रे, भादो तीत, कुवार मास गुड़ खाओ नीत कातिक मुरई, अगहन तेल, पूस कर दूध से मेल माघ मास घिव खिंच्चड़ खा, फागुन में उठि प्रात नहा ये बारे के सेवन करे, रोग दोस सब तन से डरे। यह संभवतया भोजपुरी कहावत है। इसका अर्थ अभी पूरा मालूम नहीं है। फिर भी आंचलिक स्वर होने के कारण गिरिजेश भोजपुरिया की फेसबुक वॉल से उठाकर यहां लाया हूं।
Comments
हूं इसे तो मैं फैक्ट भी कह सकता हूं।
धन्यवाद
Pauranik KathayenTHANKS FOR ARTICALS