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एक कहावत पुरानी

पूत कपूत तो का धन संचय , पूत सपूत तो का धन संचय
इस कहावत के पीछे का मर्म यह है कि पूत अगर कपूत निकला तो उसके लिए धन संचय करके क्या फायदा , क्यों कि कपूत तो कमाया हुआ धन नष्ट कर देगा. और अगर वो सपूत निकला तो भी धन संचय कर के क्या फायदा , क्योकि सपूत खुद धन संचय कर सकता है. दोनों ही हालातो में मनुष्य को संग्रह कि नीति से बचना का सुझाव दिया गया है.

Comments

बहुत बढ़िया बहुत पुरानी कहावत है और सटीक है .
हां अभी धन संचय नहीं कर पा रहा हूं तो यही सोचकर काम चला रहा हूं। यह कहावत उपभोक्‍तावाद से प्रेरित लगती है। यानि अभी कमाओ और अभी खर्च कर दो। न बड़ा परिवार करो और न उसके लिए कुछ बचाओ :)
imnindian said…
नहीं ,सिद्धार्थ जी यह बुद्ध के बचनो से भी प्रेरित लगती है कि " संग्रह मत करो ". सोचिये अगर हम इस भावना से प्रेरित हो कर रिश्वत ,जमा खोरी न करे तो समाज का कितना भला होगा. हम प्राय संग्रह यही सोच कर करते है कि हमारे बच्चे आगे जाकर सुख पायेगे...हम भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं रहते है तभी तो अंधाधुन संग्रह करते है...शायद मेरी बाते आपको ठीक लगे.नहीं भी लग सकती है...पर कोई बात नहीं...
Arshia Ali said…
एक बहुचर्चित एवं सार्थक कहावत।
Think Scientific Act Scientific
amit said…
Aakhir Kyon एक कहावत पुरानीPauranik Kathayenthanks for articals

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