पूत कपूत तो का धन संचय , पूत सपूत तो का धन संचय
इस कहावत के पीछे का मर्म यह है कि पूत अगर कपूत निकला तो उसके लिए धन संचय करके क्या फायदा , क्यों कि कपूत तो कमाया हुआ धन नष्ट कर देगा. और अगर वो सपूत निकला तो भी धन संचय कर के क्या फायदा , क्योकि सपूत खुद धन संचय कर सकता है. दोनों ही हालातो में मनुष्य को संग्रह कि नीति से बचना का सुझाव दिया गया है.
इस कहावत के पीछे का मर्म यह है कि पूत अगर कपूत निकला तो उसके लिए धन संचय करके क्या फायदा , क्यों कि कपूत तो कमाया हुआ धन नष्ट कर देगा. और अगर वो सपूत निकला तो भी धन संचय कर के क्या फायदा , क्योकि सपूत खुद धन संचय कर सकता है. दोनों ही हालातो में मनुष्य को संग्रह कि नीति से बचना का सुझाव दिया गया है.
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