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कौआ कोसे ढोर न मरे

कौआ के कोसे ढोर मरे तो,
रोज कोसे, रोज मारे, रोज खाए।

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कोस - किसी के बारे में बुरा सोचना, किसी का बुरा होने की कामना करना।
ढोर - जानवर

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भावार्थ - इसका सीधा सा अर्थ है कि यदि बुरा सोचने वालों के कारण ही किसी का बुरा होने लगे तो सभी बैठे-बैठे लोगों का बुरा करते रहेंगे। यदि ऐसा होता तो कौआ को अपने खाने के लिए किसी मरे जानवर का इंतज़ार नहीं करना पढता। वह रोज किसी जानवर का बुरा सोचता (मरने की सोचता) जानवर मरते और कौआ को खाने को मिलता।
इससे शिक्षा मिलती है कि हमारा बुरा हमेशा हमारे कर्मों से होता है, किसी के बुरा चाहने से हमारा बुरा नहीं होता।

Comments

बहुत प्रेरणादायक कहावत...
admin said…
हमारे गांव मं यह कहावत इस रूप में चलती है-
चमार के मनाने से डांगर नहीं मरते।

दुर्गापूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Anonymous said…
Hmaare gaaon me kahaawat hai...Lakdi ki kaathi kaathi pe ghodaa aur Mahamantri Tasleem Behen ka laudaa😂😂😂 chutiyaa
amit said…
Aakhir Kyon कौआ कोसे ढोर न मरे
Pauranik Kathayenthanks for articals

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