ससुरार सुख की सार,
जो रहे दिना दो-चार।
जो रहे दिना दस-बारा,
हाथ में खुरपी, बगल में चारा।
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ससुरार = ससुराल
दिना = दिन
बारा = बारह
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इस कहावत का तात्पर्य है कि जिस जगह आपकी इज्ज़त बहुत अधिक होती हो (उदहारण के लिए ससुराल) वहां एक समय सीमा से अधिक नहीं रुकना चाहिए. इससे इज्ज़त कम होती है और फ़िर उसे भी रोज़मर्रा के काम करने पड़ सकते हैं.
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