ग्यानी काढ़े ग्यान सूं
मूरख काढ़ रोय
ग्यानी: ज्ञानी
काढ़े: गुजारता है
यानि ज्ञानवान मनुष्य ज्ञान के भरोसे मुश्किल दिनों को गुजारता है और मूरख व्यक्ति खराब दिनों में कुछ करने के बजाय केवल रोता रहता है। डॉ कुमारेन्द्र की कहावत से मुझे यह पुरानी कहावत याद आई। छोटा था तब मेरी मां मुझे रोता देखकर यह कहावत कहती थी। हालांकि बच्चे के रोने से इस कहावत का कोई लेन-देन नहीं है लेकिन चूंकि मुझे ज्ञानी बनने का भूत सवार था (जो आज भी है) इसलिए मैं रोते- रोते चुप हो जाता है और मां मुस्कुराकर अपना काम करने लगतीं।
मूरख काढ़ रोय
ग्यानी: ज्ञानी
काढ़े: गुजारता है
यानि ज्ञानवान मनुष्य ज्ञान के भरोसे मुश्किल दिनों को गुजारता है और मूरख व्यक्ति खराब दिनों में कुछ करने के बजाय केवल रोता रहता है। डॉ कुमारेन्द्र की कहावत से मुझे यह पुरानी कहावत याद आई। छोटा था तब मेरी मां मुझे रोता देखकर यह कहावत कहती थी। हालांकि बच्चे के रोने से इस कहावत का कोई लेन-देन नहीं है लेकिन चूंकि मुझे ज्ञानी बनने का भूत सवार था (जो आज भी है) इसलिए मैं रोते- रोते चुप हो जाता है और मां मुस्कुराकर अपना काम करने लगतीं।
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