कुंभार री बेटी, काकोसा नौं,
चढ़ बैठी किल्ले ऊपर, लूट लाई गौं।
भावार्थ: कुंभार री – कुम्हार की, नौं- नाम, किल्ले- किला, गौं- गांव
इस्तेमाल: छोटा आदमी बड़े ओहदे पर बैठकर बड़ों के बोल बोलने लगता है तो व्यंग में उसे ऐसी उक्ति कही जाती है।
कहानी: कुम्हार की अल्हड़ बेटी ‘काकोसा’ एक दिन दूसरे बच्चों के साथ खेलते-खेलते किले में चली जाती है। सैनिक बच्चों का खेल देखकर उन्हें टोकते नहीं है। काकोसा किले की प्राचीर पर चढ़ जाती है। किले की आबोहवा का ऐसा असर होता है कि वह वहीं से दुश्मन को ललकारने लगती है। तो वहां खड़ा राजपुरोहित हंसते हुए यह बात कहता है।
चढ़ बैठी किल्ले ऊपर, लूट लाई गौं।
भावार्थ: कुंभार री – कुम्हार की, नौं- नाम, किल्ले- किला, गौं- गांव
इस्तेमाल: छोटा आदमी बड़े ओहदे पर बैठकर बड़ों के बोल बोलने लगता है तो व्यंग में उसे ऐसी उक्ति कही जाती है।
कहानी: कुम्हार की अल्हड़ बेटी ‘काकोसा’ एक दिन दूसरे बच्चों के साथ खेलते-खेलते किले में चली जाती है। सैनिक बच्चों का खेल देखकर उन्हें टोकते नहीं है। काकोसा किले की प्राचीर पर चढ़ जाती है। किले की आबोहवा का ऐसा असर होता है कि वह वहीं से दुश्मन को ललकारने लगती है। तो वहां खड़ा राजपुरोहित हंसते हुए यह बात कहता है।
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