मूंछ उखाड़े मुर्दा हल्को न होवे।
===============
इस कहावत का अर्थ इस रूप में लगाया जा सकता है कि छोटे-छोटे काम निपटाने से किसी बड़े काम में सफलता नहीं मिलती। बड़े काम को करने में इस तरह के छोटे-छोटे प्रयासों से मदद भी नहीं मिलती। इस तरह के छोटे काम निरर्थक ही कहे जा सकते हैं।
===============
इस कहावत का अर्थ इस रूप में लगाया जा सकता है कि छोटे-छोटे काम निपटाने से किसी बड़े काम में सफलता नहीं मिलती। बड़े काम को करने में इस तरह के छोटे-छोटे प्रयासों से मदद भी नहीं मिलती। इस तरह के छोटे काम निरर्थक ही कहे जा सकते हैं।
Comments
रविंद्रनाथ टगोर की एक कविता है कि लूनी नदी अगर मरू भूमि में ख़भी जाये गी तो कम से कम उस की नमी तो उस जगह में रह जाये गी ....दुनिया में कुछ भी बेकार नहीं है....
Pauranik Kathayenthank for artical