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मेढ़ा जब पीछे हटे

मेढ़ा जब पीछे हटे, वो ना रहे छपकन्त,
बैरी जब हँस के बोले, तब संभारो कंत।
(मेढ़ा= सिंग वाली भेड़, छोटा भैंसा या साँढ, छपकन्त-बिना मारे नहीं रहने वाला, बैरी- शत्रु)
भोजपुरी के सहज, सरल और व्यावहारिक अनुभवों के पिटारे से इस बार यह कहावत, जिसमें व्यक्ति का बाह्य आचरण देख उसकी नियत को भांप लेने का संदेश छुपा है।
इसका तात्पर्य है की यदि किसी व्यक्ति को देख साँढ अपने स्वाभाव के विपरीत पीछे हटे तो इससे समझ लें की वह अब वार करने ही वाला है। इसी प्रकार यदि कोई शत्रु आपसे मीठी जुबान में बात करता हुआ अपनी शत्रुता से पीछे हटने का भ्रम दे तो सावधान हो जायेंया संभल जायें क्योंकि वो किसी नए प्रहार की योजना बना रहा है।
निश्चित ही इतनी गूढ़ बातको कितनी सरलता से कह दिया गया है इस कहावत में।

Comments

बिल्कुल सही कहावत है यह ..
Anonymous said…
sach bilkul sahi kahavat hai,umda peshkash
Unknown said…
एक बार फ़िर बहुत ही अच्छी कहावत. मीठी जबान में मीठी बात. बधाई.

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