1:
//अम्मा कहेली बेटी नीति उठी आइयह
पापा कहले छौ मास आइयह
भइया कहेले बहिना काजपरोजन
भाभी कहेली जनि आव तुहै//
(मायने- शादी के बाद बेटी को मां कहती है बेटी रोज-रोज आ जाना, पिता कहते हैं छे महीने पर आना, भाई कहते हैं बहन कभी कोई मौका-तीज-त्यौहार पड़े तब आना, भाभी कहती है तुम मत आना,ये शादी के बाद बेटी के प्रति मां का प्यार बताता है। )
2:
//बेटा
मचिया बैठल रउरा अम्मा हे बड़इतीन
जैसन बूझिय आपन धियवा
वैसन बूझियह हे हमरो तिरियवा
मां
-
पुरुब के चांद पश्चिम चली जाइयह
धिया के दुलार पतोह नहीं पाइहें
बहू
-उड़िया के पानी बरेरी चली जाइहें
अवध सिंघोड़वा ननद नहीं पाइहें//
(मायने-शादी के बाद बेटा अपनी पत्नी को लेकर आया है, मां चारपाई पर बैठी है
बेटा- मां जैसे तुम अपनी बेटी को मानती थी उसी तरह मेरी पत्नी को दुलार देना
मां- पूरब का चांद पश्चिम चला जाएगा, मगर बेटी जैसा दुलार बहू नहीं पा सकती
बहू-पानी बहने की जगह उड़कर आसमान की ओर जाने लगेगा लेकिन अब इस घर से ननद को कुछ नहीं मिलेगा )
(शब्द
मचिया-चारपाई, धिया-बेटी, तिरिया-पत्नी, पतोह-बहू, उड़िया-उड़ना, अवध का मतलब अयोध्या से है, सिंघोड़ा सिंदूर रखने का एक छोटा संदूक नुमा होता है, अवध और सिंघोड़वा को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया है)
पूर्वांचल के ये दोनों ही लोकोक्तियां बेटी और बहू को लेकर बुनी गई हैं। तब के समाज की सोच-संस्कृति, मां की ममता, बेटी और बहू के बीच भेदभाव, इन मुहावरों में सबकुछ है। ये मैंने अपनी मां से फोन पर पूछ कर लिखा है। क्योंकि बातों-बातों में वो बहुत कुछ ऐसा बोल जाती थी, जिसे हम तब समझ नहीं पाते थे। मैंने उनसे ऐसे और भी मुहावरों-लोकोक्तियों-गीतों को अपनी याददाश्त से बाहर खींचने को बोला है। फिलहाल तो यही।
//अम्मा कहेली बेटी नीति उठी आइयह
पापा कहले छौ मास आइयह
भइया कहेले बहिना काजपरोजन
भाभी कहेली जनि आव तुहै//
(मायने- शादी के बाद बेटी को मां कहती है बेटी रोज-रोज आ जाना, पिता कहते हैं छे महीने पर आना, भाई कहते हैं बहन कभी कोई मौका-तीज-त्यौहार पड़े तब आना, भाभी कहती है तुम मत आना,ये शादी के बाद बेटी के प्रति मां का प्यार बताता है। )
2:
//बेटा
मचिया बैठल रउरा अम्मा हे बड़इतीन
जैसन बूझिय आपन धियवा
वैसन बूझियह हे हमरो तिरियवा
मां
-
पुरुब के चांद पश्चिम चली जाइयह
धिया के दुलार पतोह नहीं पाइहें
बहू
-उड़िया के पानी बरेरी चली जाइहें
अवध सिंघोड़वा ननद नहीं पाइहें//
(मायने-शादी के बाद बेटा अपनी पत्नी को लेकर आया है, मां चारपाई पर बैठी है
बेटा- मां जैसे तुम अपनी बेटी को मानती थी उसी तरह मेरी पत्नी को दुलार देना
मां- पूरब का चांद पश्चिम चला जाएगा, मगर बेटी जैसा दुलार बहू नहीं पा सकती
बहू-पानी बहने की जगह उड़कर आसमान की ओर जाने लगेगा लेकिन अब इस घर से ननद को कुछ नहीं मिलेगा )
(शब्द
मचिया-चारपाई, धिया-बेटी, तिरिया-पत्नी, पतोह-बहू, उड़िया-उड़ना, अवध का मतलब अयोध्या से है, सिंघोड़ा सिंदूर रखने का एक छोटा संदूक नुमा होता है, अवध और सिंघोड़वा को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया है)
पूर्वांचल के ये दोनों ही लोकोक्तियां बेटी और बहू को लेकर बुनी गई हैं। तब के समाज की सोच-संस्कृति, मां की ममता, बेटी और बहू के बीच भेदभाव, इन मुहावरों में सबकुछ है। ये मैंने अपनी मां से फोन पर पूछ कर लिखा है। क्योंकि बातों-बातों में वो बहुत कुछ ऐसा बोल जाती थी, जिसे हम तब समझ नहीं पाते थे। मैंने उनसे ऐसे और भी मुहावरों-लोकोक्तियों-गीतों को अपनी याददाश्त से बाहर खींचने को बोला है। फिलहाल तो यही।
Comments
Regards
एक आग्रह और
कहावत के ठीक नीचे आंचलिक शब्दों के अर्थ देने के बाद कहावत का भाव एवं अर्थ देंगी तो अन्य अंचलों के पाठकों को भी लाभ होगा। चूंकि अभी शुरूआती दौर है सो एक समान कहावतों को विश्लेषण शुरू नहीं हो पाया है लेकिन भविष्य में इसकी बहुत गुंजाइश है। आपके द्वारा अभी किया गया छटांक अतिरिक्त श्रम आगे जाकर बहुत अच्छे परिणाम दिलाएगा।
... दो और कीमती कहावतें शामिल करने के लिए आभार