छिनरा, चोर, जुआरी,
इनसें गंगा हारी.
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छिनरा = व्यभिचारी पुरूष
कहा गया है कि व्याभिचारी पुरूष से, चोर से और जुआ खेलने वाले का सुधार बहुत मुश्किल है, इनको सुधार न पाने के कारण ही कहा गया कि गंगा जैसी पावन नदी भी इन्हें पवित्र नहीं कर सकती.
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