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खसम को रोटी तुम पै देओ

बातें-चीतें हमसे लेओ,
खसम को रोटी तुम पै देओ।
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खसम = पति
पै = बनाना
बातें-चीतें = बातचीत, गपशप
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बुंदेलखंड में ये कहावत ऐसे लोगों के लिए प्रयुक्त होती है जो काम की अपेक्षा बातों में अपना अधिक समय लगाते हैं.

Comments

Anonymous said…
आपको सपरिवार दीपावली व नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये
Neelima said…
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग की सैर कर !
Ashok Suryavedi said…
abhinandniya pryas. Jai Jai BUNDELKHAND.
Anonymous said…
दाउ बकौल एक बुंदेलखंडी शहर का चरित्र है, जिसे इसे दुनिया में जो भी हो रहा है उस पर अपनी राय देनी के आदत है… चाहे वो फिल्में हो, राजनीति हो या, तकनीकी हो या अंतराष्ट्रीय मुद्दा.. .. पर ये उनकी अपनी सोच और अपनी कल्पना शक्ति के हिसाब से होती है और यही बात इस चरित्र को दिलचस्प बनाती है…
मुद्दा. काले धन का हो या, दिल्ली की राजनीति का, whatsapp का हो या फेसबुक का, यहाँ तक की बकौल दाउ की चिंता और अभियक्ति, अमेरिका के चुनाव तक है..
आप Youtube लिंक पे इस चरित्र का आनंद ले सकते हैं… और आगे आने वाले संस्करण के लिए चैनल को सब्सक्राइब कर सकते हैं…
https://www.youtube.com/watch?v=_alF1OLdaZM
Unknown said…
Yadav baccha kabhi na sachha iske baare me bataye please

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चैत चना, वैशाख बेल - एक भोजपुरी कहावत

चइते चना, बइसाखे बेल, जेठे सयन असाढ़े खेल  सावन हर्रे, भादो तीत, कुवार मास गुड़ खाओ नीत  कातिक मुरई, अगहन तेल, पूस कर दूध से मेल  माघ मास घिव खिंच्चड़ खा, फागुन में उठि प्रात नहा ये बारे के सेवन करे, रोग दोस सब तन से डरे। यह संभवतया भोजपुरी कहावत है। इसका अर्थ अभी पूरा मालूम नहीं है। फिर भी आंचलिक स्‍वर होने के कारण गिरिजेश भोजपुरिया की फेसबुक वॉल से उठाकर यहां लाया हूं। 

एक कहावत

न नौ मन तेल होगा , न राधा नाचेगी । ये कहावत की बात पुरी तरह से याद नही आ रही है, पर हल्का- हल्का धुंधला सा याद है कि ऐसी कोई शर्त राधा के नाचने के लिए रख्खी गई थी जिसे राधा पुरी नही कर सकती थी नौ मन तेल जोगड़ने के संदर्भ में । राधा की माली हालत शायद ठीक नही थी, ऐसा कुछ था। मूल बात यह थी कि राधा के सामने ऐसी शर्त रख्खइ गई थी जो उसके सामर्थ्य से बाहर की बात थी जिसे वो पूरा नही करपाती। न वो शर्त पूरा कर पाती ,न वो नाच पाती।

जाट, जमाई भाणजा रेबारी सोनार:::

जाट जमाई भाणजा रेबारी सोनार कदैई ना होसी आपरा कर देखो उपकार जाट : यहां प्रयोग तो जाति विशेष के लिए हुआ है लेकिन मैं किसी जाति पर टिप्‍पणी नहीं करना चाह रहा। उम्‍मीद करता हूं कि इसे सहज भाव से लिया जाएगा। जमाई: दामाद भाणजा: भानजा रेबारी सोनार: सुनारों की एक विशेष जाति इसका अर्थ यूं है कि जाट जमाई भानजे और सुनार के साथ कितना ही उपकार क्‍यों न कर लिया जाए वे कभी अपने नहीं हो सकते। जाट के बारे में कहा जाता है कि वह किए गए उपकार पर पानी फेर देता है, जमाई कभी संतुष्‍ट नहीं होता, भाणजा प्‍यार लूटकर ले जाता है लेकिन कभी मुड़कर मामा को नहीं संभालता और सुनार समय आने पर सोने का काटा काटने से नहीं चूकता। यह कहावत भी मेरे एक मामा ने ही सुनाई। कई बार

चन्द पंजाबी कहावतें

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नंगा और नहाना

एक कहावत : नंगा नहायेगा क्या और निचोडेगा क्या ? यानि जो व्यक्ति नंगा हो वो अगर नहाने बैठेगा तो क्या कपड़ा उतारेगा और क्या कपड़ा धोएगा और क्या कपड़ा निचोडेगा। मतलब " मरे हुए आदमी को मार कर कुछ नही मिलता" । होली की शुभ कामनाये सभी को। माधवी