समय धराये तीन नाम,
परशु, परसुआ और परशुराम
अर्थात अच्छे बुरे समय के अनुसार, समाज का दृष्टिकोण एक ही व्यक्ति के लिए बदलता रहता हैं। इसके लिए ऋषि परशुराम का उदाहरण का प्रयोग किया गया हैं। जहाँ बचपन में प्रेम में बालक को परशु नाम से जाना जाता हैं वहीं वक्त बदलने के साथ दारिद्र के कारण उन्हें परसुआ नाम से बुलाया गया। कालांतर में जब उन्होंने विश्व विजय का अभियान शुरू किया तो लोग उन्हें आदर से परशुराम के नाम से बुलाने लगे।
चइते चना, बइसाखे बेल, जेठे सयन असाढ़े खेल सावन हर्रे, भादो तीत, कुवार मास गुड़ खाओ नीत कातिक मुरई, अगहन तेल, पूस कर दूध से मेल माघ मास घिव खिंच्चड़ खा, फागुन में उठि प्रात नहा ये बारे के सेवन करे, रोग दोस सब तन से डरे। यह संभवतया भोजपुरी कहावत है। इसका अर्थ अभी पूरा मालूम नहीं है। फिर भी आंचलिक स्वर होने के कारण गिरिजेश भोजपुरिया की फेसबुक वॉल से उठाकर यहां लाया हूं।
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Pauranik KathayenTHANKS FOR ARTICALS