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Showing posts from July, 2010
चिलम तमाखू हुक्का , साहब चोर उचक्का !! यह कहावत बुंदेलखंड के खंगार काल से जुडी है यहाँ उपयुक्त साहब शब्द ने यवन शब्द का स्थान ग्रहण किया है . बुन्देली जन मानस के दिमाग में उस समय तक यह धरना थी की यवन चोर उचक्के होते हैं इनसे किसी तरह का व्यवहार नहीं रखना है . बाद में यही कहावत अफसर वर्ग के लिए प्रयोग में लाई जाने लगी ..
करवा कुम्हार कौ घी जजमान को.  लगे ना बाप को स्वाहा ! हमारे बुंदेलखंड में जब कोई दुसरे के संसाधनों का बेतरतीब अनुचित उपयोग अपने हित में करता है तो कहते हैं कि  करवा कुम्हार कौ घी जजमान को.  लगे ना बाप को स्वाहा
बामुन  कुत्ता   नाऊ  जात देख गुर्राऊ !!! भावार्थ :- ब्राह्मण  कुत्ता और नाई  अपनी जाति के लोगों से  स्वाभाविक इर्ष्या करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि स्वजातीय उनका हिस्सा ना ले ले !!!!

olam maasi dhamm

ओलम मसि अधम्म  बाप पढ़े ना हम्म !! भावार्थ :- यूँ तो इस बुन्देलखंडी कहावत को संस्कृत के वाकया ॐ नमः सिद्धं , का अपभ्रंस माना जाता है . किन्तु यह कहावत बुंदेलखंड  के खंगार राजवंश जुडी है . खंगार काल  में बुंदेलखंड जुझौती प्रदेश के नाम से जाना जाता था . खंगार  राजा जुझारू संस्कृति के  पालक पोषक थे . जिनके स्वाभिमान के किस्से बुंदेलखंड में गाये जाते है . तो इस कहावत का अर्थ है कि अरबी फारसी अधम ( अपवित्र , नीच  ) लोगो कि भाषा है इसको ना हमारे पूर्वजो ने पढ़ा है  ना हम पढेंगे क्योंकि ऐसा  करने से हम भी अधम ( अपवित्र ,  नीच  ) हो जायेंगे !!!!!