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Showing posts from March, 2009

माई गुन बछरू, पिता गुन घोड़...

माई गुन बछरू, पिता गुन घोड़ नाही ज्यादा त थोड़े-थोड अर्थात माँ बाप के गुण अपने बच्चो में आते ही हैं यदि बहुत ज्यादा नहीं तो थोड़े ही....

बुड़बक के इयारी आ भादो के उजियारी

बुड़बक के इयारी आ भादो के उजियारी बुडबक = मूर्ख, बेवकूफ; इयारी = दोस्ती, मित्रता; उजियारी = चांदनी मतलब यह की भादों महीने की चांदनी और मूर्ख की मित्रता का कोई भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि ये कभी भी साथ छोड़ सकती हैं। भादों के बरसाती मौसम में कम काले बादल चाँद को ढँक लें और अँधेरा छा जाए, कोई ठिकाना नहीं। इसी प्रकार मूर्ख और धूर्त मित्र भी कब साथ छोड़ जाए इसका कोई भरोसा नहीं। सतीश चंद्र सत्यार्थी

मूरख जिंदगी गुजारता है रोते हुए

ज्ञानी काढ़े ज्ञान सूं  मूरख काढ़े रोय  काढ़े - गुजारता है या निभाता है  कहावत का शाब्दिक अर्थ यह है कि जिस व्‍यक्ति के पास ज्ञान होता है वह अपनी जिंदगी के कड़वे मीठे अनुभवों का आंकलन ज्ञान के साथ करता है वहीं मूर्ख आदमी परिस्थितियों का रोना रोते हुए ही जिंदगी गुजार देता है।  कई बार हताश होता हूं तो मेरी मां मुझे यह कहावत सुना देती हैं। मैं मूरख बनने की बजाय ज्ञानी बनने की चेष्‍टा करने लगता हूं। :) 

एक कहावत

चढ़ते सूरज को सभी सलाम करते है यह कहावत मुझे पिछली पोस्ट को पढ़ कर याद आई । यानि जो व्यक्ति ऊपर की ओर उठ रहा है यानि तरक्की कर रहा है उसे सभी पहचानते है या उनके रिश्तेदार बनने की कोशिश करते है। उसका आदर , सम्मान करते है।

समय धराये तीन नाम, परशु, परसुआ और परशुराम

समय धराये तीन नाम, परशु, परसुआ और परशुराम अर्थात अच्छे बुरे समय के अनुसार, समाज का दृष्टिकोण एक ही व्यक्ति के लिए बदलता रहता हैं। इसके लिए ऋषि परशुराम का उदाहरण का प्रयोग किया गया हैं। जहाँ बचपन में प्रेम में बालक को परशु नाम से जाना जाता हैं वहीं वक्त बदलने के साथ दारिद्र के कारण उन्हें परसुआ नाम से बुलाया गया। कालांतर में जब उन्होंने विश्व विजय का अभियान शुरू किया तो लोग उन्हें आदर से परशुराम के नाम से बुलाने लगे।

एक कहावत बिहार की

होम करते हाथ जले होम का उद्दयेश लाभ से है। अगर होम करते वक्त किसी व्यक्ति का हाथ जल जाए तो पुण्य लाभ की जगह उसे परेशानी या मुसीबत का सामना करना पड़ जाता है। यानि भलाई का काम करने पर परिणाम अगर बुरा मिले तो इस कहावत का इस्तेमाल किया जाता है।

चोरन गारीं दें

चीज न राखैं आपनी, चोरन गारी दैं। -------------- भावार्थ - इसका अर्थ सीधा सा है कि कुछ लोग हैं जो अपने सामान की रक्षा तो करते नहीं हैं बाद में चोरी हो जाने पर चोरों को गाली देते फिरते हैं। कहने का तात्पर्य है कि हमेशा स्वयं ही अपने सामान या फिर अपने अधिकारों के लिए सचेत रहना चाहिए।

प्रेरक कथाओं का ब्‍लॉग

इन दिनों दूसरों के लिखे ब्‍लॉग लगातार पढ़ रहा हूं। एक साल बाद कुछ लोग ऐसे मिले हैं जिन्‍हें पढ़कर लगता है ठीक है कुछ देर रुकते हैं कहीं और से भी रोशनी आ रही है। इन दिनों एक ब्‍लॉग का तो बस फैन ही हो गया हूं। इस ब्‍लॉग के लेखक को तो मैं नहीं जानता लेकिन इस ब्‍लॉग की हर पोस्‍ट को अच्‍छी तरह पढ़ चुका हूं। ब्‍लॉग का नाम है सर्वश्रेष्‍ठ जैन ताओ सूफी हिन्‍दू और प्रेरक कथाएं   इसमें  निशान्‍त मिश्र जी  ऐसी सुंदर कथाएं संग्रह की हैं कि दिल चाहता है उनके हाथ चूम लूं। हर एक कथा एक तूफान की तरह दिमाग में घुसती है और पहले से चल रहे तूफान से टकरा जाती है। विचारों का प्रवाह पहले से ही रोलर कोस्‍टर पर बिठाए रखता है। इसके साथ निशांतजी के झोंके जैसे उद्वेलित कर देते हैं। हर पोस्‍ट पढ़ने के बाद कुछ देर के लिए कम्‍प्‍यूटर बंद कर देता हूं। सोचने का मसाला जो मिल जाता है। काफी देर सोचने के बाद दिमाग इतना शांत हो जाता है कि कुछ और लिखने का जी ही नहीं चाहता। मैं इस ब्‍लॉग को ट्रैक्‍यूलाइजर ब्‍लॉग कहूंगा। जहां अधिकांश ब्‍लॉग भड़ास निकालने या पानी में हलचल बढ़ाने का काम कर रहे हैं वहीं ये प्रेरक कथाएं दिल और दि

एक कहावत

ऊट के मुंह में जीरा यानि किसी बड़ी जरूरत की चीज के लिए छोटा सा बजट अथवा किसी सम्प्पन व्यक्ति को छोटा सा कुछ उपहार देने से उस स्तिथि में यह कहा जा सकता है। या किसी बहुत भूखे व्यक्ति को अगर थोड़ा सा नास्ता परोसा जाए तो भी यह उक्ति आती है।

एक कहावत बिहार की

लग्घी से घास खिलाना यानि दिखावे के लिए कोई काम करना। बांस के मुंह पर घास रख कर गाय या घोडे को घास खिलने से वो कितना खा सकता है? बस दिखावे के लिए ऐसी स्थिति में काम किया जाता है। जैसे इलेक्शन के टाइम में नेता जनता को लग्घी से घास खिलते है। लग्घी - बांस ।

नंगा और नहाना

एक कहावत : नंगा नहायेगा क्या और निचोडेगा क्या ? यानि जो व्यक्ति नंगा हो वो अगर नहाने बैठेगा तो क्या कपड़ा उतारेगा और क्या कपड़ा धोएगा और क्या कपड़ा निचोडेगा। मतलब " मरे हुए आदमी को मार कर कुछ नही मिलता" । होली की शुभ कामनाये सभी को। माधवी

तोरा बैल मोरा भैंसा, हम दूनों के संगत कइसा?

तोरा बैल मोरा भैंसा, हम दूनों के संगत कइसा? गावों में अभी भी खेत जोतने के लिए बैल या भैंसों का उपयोग किया जाता है। सामान्यतः हल में या तो एक जोड़ी बैल या फ़िर एक जोड़ी भैंसे लगाए जाते हैं। एक बैल और एक भैंसा नही लगाया जाता। कई बार किसानों के पास एक जोड़ी जानवर नहीं होते, एक ही होता है. ऐसे में दो किसान जानवरों की साझेदारी करके काम चलाते हैं. इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि तुम्हारे पास बैल है और मेरे पास भैंसा इसलिए हम दोनों में मित्रता का तो प्रश्न ही नहीं उठता। पर इसका वास्तविक अर्थ है कि दो असमान गुणों और प्रकृति वाले व्यक्तियों के बीच कभी मित्रता नहीं हो सकती और अगर हो भी गई तो ज्यादा दिन नहीं टिकती।

आगे बैजू पीछे नाथ

आगे बैजू पीछे नाथ (बैजू = बदमाश और मूर्ख व्यक्ति, नाथ = विद्वान या समझदार व्यक्ति) इस कहावत का अर्थ यह है कि अगर दो व्यक्ति खड़े हों और उनमें से एक बदमाश और मूर्ख तथा दूसरा विद्वान हो तो पहले मूर्ख को नमस्कार करना बेहतर होता है क्योंकि विद्वान व्यक्ति स्थिति को समझते हुए इसका बुरा नहीं मानेगा परन्तु ऐसा न करने पर मूर्ख व्यक्ति इसे अपना अपमान मानकर नाराज हो सकता है।

भोथर चटिया के बस्ता मोट

भोथर चटिया के बस्ता मोट । (भोथर = पढाई में मंदबुद्धि/मन न लगाने वाला, चटिया =विधार्थी, बस्ता = किताब का थैला, मोट = मोटा, भारी ) इसका अर्थ है कि जो विद्यार्थी पढने में मूढ होते हैं वे दिखाने के लिए ढेर सारी किताबें थैले में लेकर चलते हैं. यह कहावत बिहार के अधिकाँश जिलों में बहुत प्रचलित है. पढाई में पिछडे लड़कों को उलाहना देने में इसका उपयोग किया जाता है.

ख़ुद करे तो खेती

खुद करै तो खेती, नईं तौ बंजर हैती। ------------------------------- भावार्थ - इसका अर्थ यह है कि हमें अपने काम स्वयं करने चाहिए। किसी के भरोसे पर काम छोड़ने से उसमें हानि ही होती है। इसी कारण से इस कहावत में खेती का उदाहरण दिया गया है।

एक कहावत

बूढा - बालक एक सामान । यानि बूढा व्यक्ति और बच्चें की हरकते एक जैसी होती है , इस लिए क्षम्य होती है। दोनों की बदमासियों को नजर अंदाज कर देना चाहिए।

एक कहावत

बड़े हुआ तो क्या हुआ , जैसे पेड़ खजूर ; पंछी को छाया नही फल भी लगे अति दूर । यानि अगर आप बड़े/ धनवान / संपन्न हुए तो क्या हुआ, पर आप की अवस्था तो किसी कंजूस की तरह है जो सिर्फ़ अपने आप तक ही सीमित रहता है , जैसे खजूर के पेड़ से किसी को फायदा नही पहुचता , न ही राहगीर को छाया मिलती है न ही पंछी उस पर बैठ पता है। वैसे ही कंजूस व्यक्ति से समाज का कोई भला नही होता।

मन मन भावै, मुड़ी हलावै

मन मन भावै, मुड़ी हलावै। मुडी - सिर भावार्थ - इसका अर्थ है कि मन ही मन में तो किसी बात के प्रति हाँ रहती है पर बाहर से उसे मना करने का दिखावा किया जाता है।

रत्ती रती साधे

रत्ती रत्ती साधै तौ द्वारै हाती होयै। रत्ती रत्ती खोबै तो द्वारै बैठके रोये।। भावार्थ - इसका अर्थ है कि यदि थोड़ा-थोड़ा करके जोड़ा जाये तो धन-सम्पदा प्राप्त होती है। इसे ही सांकेतिक रूप में हाथी बांधने से समझाया गया है। इसी तरह यदि थोड़ा-थोड़ा ही गंवाया जाता रहे तो रोने की नौबत आ जाती है। अर्थात हमेशा सोच-समझ कर ही खर्च करना चाहिए।

एक कहावत

बाढे पूत पिता के धर्मे, खेती उपजे अपने करमे। यानि बेटा पिता के पुण्य प्रताप से बढ़ता है , और किसान की खेती अपने कर्म का परिणाम होती है। यानि की मेहनत का।

एक कहावत बिहार की

मरला पूत के भर -भर आँख । यानि की जो व्यक्ति इस दुनिया से चला गया हो हम उसका गुन- गान करते है उसके बारे में उसकी बड़ाई करते है ,और (बे) मतलब के आसू उसके लिए बहते है । जब वही व्यक्ति जिन्दा रहता है तो हम उसकी परवाह भी नही करते और जम कर उसकी बुराई करते हो ।

एक कहावत बिहार की

अधकल गगरी छलकत जाए जिस व्यक्ति में आधा - आधुरा ज्ञान हो गा वो बहुत ज्ञान बघारने की कोशिश करता है। जैसे आधी भरी हुई गगरी से पानी छलक कर गिरता है। किंतु भरी हुई गगरी से पानी छलकता नही है। अंग्रेजी में एक कहावत है - कम ज्ञान बहुत खतरनाक बात है...

एक कहावत

न नौ मन तेल होगा , न राधा नाचेगी । ये कहावत की बात पुरी तरह से याद नही आ रही है, पर हल्का- हल्का धुंधला सा याद है कि ऐसी कोई शर्त राधा के नाचने के लिए रख्खी गई थी जिसे राधा पुरी नही कर सकती थी नौ मन तेल जोगड़ने के संदर्भ में । राधा की माली हालत शायद ठीक नही थी, ऐसा कुछ था। मूल बात यह थी कि राधा के सामने ऐसी शर्त रख्खइ गई थी जो उसके सामर्थ्य से बाहर की बात थी जिसे वो पूरा नही करपाती। न वो शर्त पूरा कर पाती ,न वो नाच पाती।

एक कहावत

दूर का ढोल सुहाना लगे है । अग्रेजी में इसे ही कहते है " द ग्रास इस ग्रीन अल्वाय्स ओन द अदर साइड " यानि कि कोई भी चीज दूर से बहुत अच्छी लगती है। पर पास जाने पर उसकी खामिया हमें दिखायी पड़ने लगती है।