चीज न राखैं आपनी,
चोरन गारी दैं।
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भावार्थ -
इसका अर्थ सीधा सा है कि कुछ लोग हैं जो अपने सामान की रक्षा तो करते नहीं हैं बाद में चोरी हो जाने पर चोरों को गाली देते फिरते हैं। कहने का तात्पर्य है कि हमेशा स्वयं ही अपने सामान या फिर अपने अधिकारों के लिए सचेत रहना चाहिए।
चइते चना, बइसाखे बेल, जेठे सयन असाढ़े खेल सावन हर्रे, भादो तीत, कुवार मास गुड़ खाओ नीत कातिक मुरई, अगहन तेल, पूस कर दूध से मेल माघ मास घिव खिंच्चड़ खा, फागुन में उठि प्रात नहा ये बारे के सेवन करे, रोग दोस सब तन से डरे। यह संभवतया भोजपुरी कहावत है। इसका अर्थ अभी पूरा मालूम नहीं है। फिर भी आंचलिक स्वर होने के कारण गिरिजेश भोजपुरिया की फेसबुक वॉल से उठाकर यहां लाया हूं।
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Pauranik KathayenTHANKS FOR ARTICALS