यह ब्लॉग समर्पित है लोक अंचल की ऐसी कहावतों को जो क्षेत्र विशेष में तो बहुत बोली जाती है लेकिन किन्हीं कारणों से कभी प्रिंट नहीं होती। कहावतों की मिठास, चुभन और मिट्टी की खुशबू की बानगी देखने को मिलेगी इस उम्मीद के साथ हम यह ब्लॉग शुरु कर रहे हैं।
चइते चना, बइसाखे बेल, जेठे सयन असाढ़े खेल सावन हर्रे, भादो तीत, कुवार मास गुड़ खाओ नीत कातिक मुरई, अगहन तेल, पूस कर दूध से मेल माघ मास घिव खिंच्चड़ खा, फागुन में उठि प्रात नहा ये बारे के सेवन करे, रोग दोस सब तन से डरे। यह संभवतया भोजपुरी कहावत है। इसका अर्थ अभी पूरा मालूम नहीं है। फिर भी आंचलिक स्वर होने के कारण गिरिजेश भोजपुरिया की फेसबुक वॉल से उठाकर यहां लाया हूं।
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उड़ उड़ आंखों में पड़ी राजस्थानी रेत
सुपरकिंग के हो रहे सभी धुरंधर खेत
सभी धुरंधर खेत वीरगति पाए धोनी
शेन लिए शमशीर बनाए सूरत रोनी
दिव्यदृष्टि मद्रास केसरी देखें मुड़-मुड़
राजस्थानी रेत पड़ी आंखों में उड़ उड़
कहावतों में हमारी पीढ़ियों के गहन अनुभव छिपे हुए हैं। उन्हें जन-जन का हिस्सा बनने की बहुत जरूरत है। हिन्दी से बेहतर इसे कौन कर सकता है?
स्वागतम!!