किसी भी समाज की लोकसंस्कृ्ति को यदि जानना हो तो उसके लिए उस समाज में प्रचलित कहावतों से बढकर अन्य कोई श्रेष्ठ माध्यम हो ही नहीं सकता। क्यों कि इनमें उस समाज के पूर्वजों द्वारा संचित किया गया सदियों का अनुभव एवं इतिहास समाहित होता है। यदि ये कहा जाए कि कहावतें लोक जीवन की चेतना हैं तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। श्री सिद्धार्थ जोशी जी ने जो इस कम्यूनिटी ब्लाग के जरिये अपनी लोक संस्कृ्ति से परिचय कराने का एक प्रयास आरंभ किया है,उसके लिए यें साधुवाद के पात्र हैं। आज इस ब्लाग की सदस्यता के रूप में उन्होने जब मुझे भी इस पथ का अनुगामी बनने को आमंत्रित किया तो उसे अस्वीकार करने का तो कोई प्रश्न ही नहीं था।
चलिए आज अपनी इस भूमिका का श्रीगणेश करते हुए आपका परिचय एक भोजपुरी कहावत से कराया जाए।
*हर=हल
चलिए आज अपनी इस भूमिका का श्रीगणेश करते हुए आपका परिचय एक भोजपुरी कहावत से कराया जाए।
बछ्वा बैल बहुरिया* जोय, ना हर* बहे ना खेती होय।
इस कहावत के माध्यम से यह बताया गया है कि किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को करने के लिए सदैव क्षमतावान व्यक्ति का ही चुनाव करना चाहिए। यदि किसी अक्षम व्यक्ति को उस कार्य की जिम्मेदारी सौंप दी जाए तो न तो वो कार्य ठीक से सम्पूर्ण हो पायेगा और न ही उसका प्रतिफल मिलेगा। जैसे कि यदि कृ्षि कार्य में बैल की बजाय उसके बछडे को हल में जोत दिया जाये तो न तो ठीक तरह से खेत की जुताई हो पायेगी और न ही उपज ही भरपूर मात्रा में मिल सकेगी।
वैसे यदि वर्तमान हालातों को देखा जाए तो ये कहावत लाल कृ्ष्ण आडवाणी(स्वयंभू लोह पुरूष) और भाजपा पर बिल्कुल पूरी तरह से फिट बैठती है..:)
* बहुरिया= जुतना/जोतना*हर=हल
Comments
बहुरिया एक भिन्नार्थक शब्द है। यहाँ इसका अर्थ "जुतना/जोतने" से है।
Pauranik Kathayenthanks for articals